...

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एक स्त्री
धागे से भी महीन रिश्ते को
बचाए रखने की शिक्षा कौन देता होगा
दुखों के स्वरूप की चित्रकारी से
खुद का मन बहलाती औरत
स्वय अपने देह की पीड़ा को कभी नहीं बुनती।
सोचता हूँ....
औरत को अच्छाई की मूरत किसने बनाया दुखो ने..?
या गाँव के कुए के पास फुसफूसती उन्ही कुछ औरतों की मंडली ने,
खाने का स्वाद अच्छा होना चाहिए
सौंदर्य का रूप अच्छा होना चाहिए
शादी के बाद नौकरी चरित्र अच्छा होना चाहिए
मन का द्वंद...
किसी बिंदु पर समाप्त नहीं हो होता
प्रश्न यह भी है कि..
कौन गले लगाता होगा,
उन संवेदनशिल स्त्रियों को दुःख के समय..?
जो जीवन स्वप्न से ज्यादा यह सोचने में व्यस्त हैं
की उसका घर, अब घर नहीं नैहर हो चुका।
संभवत हमारा समाज एक खेत हैं
जो औरत को फसल समझता हैं
तथा इसके बस हिस्से करना चाहता हैं
फिर हर कोई अपना मुट्ठी खोलता हैं
और ले जाता हैं उसे अपनी “ कोठी ” भरने को, विवाह के नाम पर,।

हे स्त्री !
मैं तुम्हारे जीवन के संघर्ष का एक कोना भी नहीं हो सकता।
किन्तु मैं बिनती करता हूँ हर पुरुष से
की विवाह के उपरांत वो तुम्हें दे,
बिदाई के समय तुम्हारी माँ द्वारा
दिये गए खोइछे भर चावल ( धान ) जितना प्रेम तुम्हें हर रोज दे।
धन्यवाद...

अमृत यादव
© अmrit...