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सुकुन के कुछ पल 🌳🌴
जीवन की इस आपा - धापी में , तनाव भरे माहौल में कुछ पल तो ऐसे हों जो ‌आपके अपने हो,जो आपको सुकुन दे सकें। जो आपको अपने आप से मिला सके, जो फिर से जीवन को नव स्फुर्ति दें सके। जीवन में एक नई उमंग भर सके ।

और इसके लिए प्रकृति की सानिध्य में कुछ पल गुजारने से बेहतर शायद ही और कोई दूसरा विकल्प नजर में आता है। मानों मां प्रकृति की गोद में बैठ कर हम अपने सभी दुखों, तनावों को उनके साथ साझा कर फिर से तरोताजा हो जातें हैं।

मेरे घर के पास ही एक छोटा सा बगीचा ( Garden)है । छोटा है पर अच्छे रखरखाव की वजह से बहुत ही सुन्दर स्थिती में है। सुबह सबेरे यह बगीचा सुबह की सैर (morning walk), laughter club, व वरिष्ठ नागरिकों की बैठक का केंद्र होता है। हां कुछ लोग यहां रंग बिरंगे फूल भी चुनते हैं, हाथ में थैली लिए इतने शीघ्रता से फुल ढुढते है मानों यह भी एक स्पर्धा ही हो। सचमुच प्रकृति कितना भी दें पर मानव मन की तृष्णा इतनी आसानी से तृप्त कहा होती है । खैर ....

पर सच बताऊं तो जो आनंद वहां खामोशी से बैठ कर पेड़ पौधे को निहारने और विभिन्न पक्षियों की मधुर ध्वनिओ को सुनने का है,वह अवर्णनीय है । प्रकृति की अद्भुत कारागिरी देखकर मन मयूर प्रफुल्लित हो उठता है। कितनी खुबसूरती, कितनी विविधता !
हर एक पौधा दुसरे से एकदम भिन्न, एकदम अलग ! कुछ फुल अकेले ही पत्तियो से झांक रहे है तो कुछ समुह में माहौल का जायजा ले रहे हैं। हर फुल, हर पत्ती जैसे आपसे संवाद कर रही हो, हां ये संवाद निशब्द होते हैं।
और रंग तो इतने विशिष्ट है कि विस्मय सा होता है । कहां से आए होंगे ये रंग ! कौन वो चित्रकार है जिसके खजाने में इतने डिजाइन और रंग है ?

पक्षियों के स्वर पर हम अक्सर ध्यान नहीं देते । पर यकीन मानिए वो भी एक अलग विश्व है।
सुरीला पन, सुर ताल, विविधता हतप्रभ सी कर‌ देती है। कुछ पल के लिए हम भी उसी विश्व में ‌पहुच जाते हैं । मानों उसके साथ एकाकार हो जातें हैं। हमारा कोई अलगअस्तित्व ही नहीं रहता। यही कुछ पल तो संजीवनी काम करते हैं । शायद यही ध्यान ( meditation) है और यह प्रकृति भी तो ‌उसी परम‌पिता परमात्मा का ही ‌स्वरूप है। और इसी रूप में उस परमपिता परमात्मा को महसूस करने का अहसास मानों अभिभुत सा कर देता है। समय मानों थम सा जाता है।

परंतु इस विश्व के विकर्षण ( distractions) आपको शीघ्र ही फिर धरातल पर ला खड़ा करते हैं।
पर अभी तक इस विस्तृत धरा के एक छोटे से अंश से ही हम रुबरु हो पाये है।
अब आकाश की ओर चलते हैं ..

आकाश की ओर तो हम शायद तब ही ‌देखते है जब कोई गंभीर मसला ऊपरवाले तक पहुंचाना हो। वर्ना जमीं से ही फुर्सत कहां ?

फिर कभी समय निकाल कर अपनी दृष्टि नभ मंडल ( आकाश) पर डालिएगा।
सुबह सबेरे या सांझ का‌ समय हो तो क्या कहने ?
जैसे एक बड़ा सा कैनवस सामने
रखा हो। अद्भुत प्रकाश योजना, अद्भुत चित्रकारी ! शब्दों में उतार पाना मुश्किल है। हां, इस कैनवस पर पल पल चित्र बदलते रहते हैं,
4D, 5D सब इसके सामने नगण्य है। रंग इतने की शायद ही उसके शेड ध्यान में आये, पर अभी तो बस‌ उनका लुत्फ लिजिए जनाब ! अब सब कुछ विस्मृत हो गया है, अब हृदय
श्रद्धा और असीम आस्था से भर जाता है और सृजनहार की स्मृति और अलौकिकता का अहसास उनसे जुड़ाव का माध्यम बन जाता है।

पर फिर धरातल के आकर्षण फिर हमें पुनः हमें उसी आपाधापी की ओर लौटा ले जाते हैं। फिर वही दैनिक चक्र सुरु हो जाता है। पर इसमें से फिर कुछ पल सुकुन ढुंढगे, तब तक अलविदा ......

- ओम

29.06.2020


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