...

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प्रेम के कुछ पल (पार्ट -2)

तुम बहकी नही थी ब्याकुल भी नही,
तुम मुस्कुरा रही थी,
प्रतीक्षा कर रही तुम,
समय गतिमान था पर उतना नही जितना चाहतीं थी तुम,
मैं मैं नही था तुम भी खो सी गयी थी,
आसमान सा दिखा तुम्हारा वक्ष और स्तन थे चंद्र,
मैं जीवन।

कमर के झुकाव का कोण,
नाभि से स्तनों के मध्य तक समतलता,
मृत्यु तक ना भूलूंगा वो सांस रोक लेना तुम्हारा,
मृदु दर्द से तुम्हारा लिपट जाना बाहों में।

जहां मैं मैं ना रहा,
तुम भी ना थी तुम में,
परिवर्तन हुआ फिर प्रतीत हुआ।

आह!

प्रेम के स्वरों से गूंज गया तुम्हारा और
मेरा वो कमरा जहाँ तुम तरीके से
मुझमें ढल गई थी......
तुम....
तुम न थी मैं मैं न था प्रेम की अकांशाओं
का मिलन चरम पर था 💕
।।
प्रिय उत्कंठाओं से परे जो संबंध
हमारे बीच बना था वह
विश्वास व प्रेम का भी था
प्रेम के संबंध अगर सच्चे
हों तो विरहावस्था में भी
प्रेम की अनुभूति होती है ❤
.........
यही यथार्थ प्रेम है!!!!


© behke_alfaaz💕