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एक असम्भव प्रेम गाथा की खोज की आत्ममोकछ विफलता आत्मसमर्पण ।।
वैशया द्वारा श्रृष्टि की का भार उठाने और सबको प्रसन्न रखकर एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त को पूर्ण करने की बात कही गई है मगर उसकी अपनी कुछ सरथे है उनके साथ वह इस गाथा को पूर्ण करने की अपनी एक इसतुती में श्री हरि विष्णु के वर्णन द्वारा बताती हैं क्योंकि वो सरथे और क्या वैशया का मान रखा जाएगा आइए देखते और सुनते हैं श्री हरि विष्णु बोलते हैं कि "एक असम्भव प्रेम गाथा का अनन्त माई रहस्य काभी नहीं पूरा हो पाएगा ये तुम क्या कोई नहीं पूरा कर सकता क्योंकि यही रहस्य तो कयलियुग है जहा कन्या धन के अभाव में वैशय स्तुति मजबुरन अपनाती है और आदम वसना माई होने के कारण अपना सत्व ही दान कर जो है।।
और इसलिए जहां नर का सत्व नहीं जहा कन्या धन के अभाव में आकर वैश्य स्तुति करने लगे तो वहा काभी प्रेम गाथा अनन्त संभव ही नही हो सकती और यही चीज समस्त गाथा में दशाई गई है ।। इसलिए एक असम्भव प्रेम गाथा के आत्मसमर्पण की विफलताओं बखूबी देखा जा सकता है।।
यद्यपि इस गाथा से हमे यह शिक्षा मिलती है कि -यह कहानी हमें यह बताती है कि श्रृष्टि में प्रेम है ही नहीं बल्कि सिर्फ एक वसना का संचार है क्योंकि किसी को प्रेम रूह नहीं चाहिए बस सब वासना में अग्रसर बढ़ते हुए चले जाते हैं जो कि एक कलियुग
को बढ़ावा देता है जिसमें संसार की बहुत मलीन इच्छा है "लड़की को पैसा चाहिए और लड़के को जिस्म की वासना बनी रहती है जिसके कारण प्रेम विलीन हो जाता है और वसना बन जाती है । और इस तरह एक वैशया और एक आम लड़की दोनों का भेद समाप्त हो जाता है और फिर यह गाथा एक वैशया और एक अन्य व्यक्ति की एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त के रूप में प्रचलित और विख्यात हो जाती है।। वैश्य समाज मनु ग्रस्त रोगिन -वशयमनु
श्रोथ श्री हरि विष्णु द्वारा स्थापित कवच एक उतरित सन्ध्या बन्धन ज्ञान कवच कहा गया है।।
इस गाथा में दो महत्वपूर्ण स्रोत योनि और वीर्य ने बहुत परिश्रम किया योनि काल इस्त्रीकाल से निकल संभोग तपस्या के कठोर से निकाला वीर्य काल के पान बिना स्त्री भोग लगाना वर्जित माना गया है।। क्योंकि बिना स्त्रीकाल के वीर्य काल कि बिना स्त्री संभोग तपस्या बहुत ही बड़ा योगदान है इसलिए मनु हमेशा संभोग तपस्या काल के पश्चात वीर्य का आवाहन करना और उसे खुद पान करना की एक बहुत बड़ी महानता बताई गई है क्योंकि एक मनु लन्ड द्वारा कन्या की योनि से उफ निकाल कर उसके वीर्य भोग प्रसाद पान करना ही उसके लिए चरमसुख कहा गया और लड़के संभोग तपस्या ही जरम सुख की प्राप्ति का आवाहन उसे प्रेम बोध करता ऐसा होता नहीं लेकिन पुरुष और स्त्री को यौन-संबंध बनाने में ज्यादा जरम सुख की प्राप्ति होती है और वो आम तौर पर इसी वल क़रार देते हैं।।
श्री हरि बताते जो यक्ति अपनी योनि का सम्मान नहीं कर पाते वो तुम्हारी योनी क्या सम्मान करेंगे और क्या ही तुम्हें अपनाएंगे क्योंकि जो पुरुष सिर्फ एक का ही होता है वो कोई योनि में अपना योगदान देकर स्थान प्राप्त करने में सक्षम और सफल होता है मगर जो हर स्त्री को अपनी योनि कहता हैं किसी योनि के योग्य नहीं हैं और ना ही उसकी अपनी कोई योनि बन सकती और ऐसे लोग स्त्री भोग करने के चक्कर में कन्या ओ की बलि लगा कर खुद भी हलाल होने के लिए तैयार हो जाते क्योंकि इस गाथ में ऐसे पुरुष के लन्ड से स्त्री अपनी योनि और चूत का भोग करना वर्जित समझती और ऐसे जरमसुख को वो स्त्री भोग ना कहकर उनका लन्ड अपनी योनि और चूत में ना लेकर एक संभोग तपस्या को खंडन होने से बचा लेती है।। वो ऐसे मनु के लन्ड अस्तित्व हीन तथा एक योनि, चूत वीर्य का भोग ना देने की बात कही है।।


।।🧕✏️ श्री राधा श्री राधा।।
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