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मास्टर साहब
#टीचर
आज टीईटी का परिणाम घोषित हुआ है, शैलेंद्र भी पास हुए है। घर में खुशी का माहौल है। वो क्या है पांडेयपुर मोहल्ले में जनरल कास्ट का लडका एक ही बार में वो भी बिना किसी घूंस के पास हुआ है, कोई कम बात थोङे ना है जी! शैलेंद्र खुश है कि अब वो अपने तरीके से बच्चों को इतिहास की सैर करवाएंगे। वह दिन भी आ गया जब शैलेन्द्र जी ने विद्यालय मे अपना पहला कदम रखा। पहले तो उन्होंने विद्यालय को जी भर कर निहारा।
फिर शिक्षकों और बच्चों ने अपने नये अध्यापक का स्वागत किया। शैलेंद्र औपचारिकताओ से फुरसत होते ही अपने बचपन की यादो मे खो गए।
विद्यालय का पुराना रूप उनकी आँखो मे सज गया। यह संयोग ही था जिस स्कूल मे शैलेन्द्र जी की प्राथमिक शिक्षा पुरी हुयीं थी। आज उसी विद्यालय मे उन्हे नियुक्ति मिल गयी थी। उनके बचपन के विद्यालय मे सिर्फ दो कमरे हुआ करते थे। बच्चों की पढ़ाई खुले आसमान के नीचे वृक्षों के छाँव मे ही सम्पन्न होती थी। बरसात के दिनों मे बच्चों के बांछे खिल जाती थी क्योंकि जिस दिन भी मुसलाधार वर्षा होती थी उस बच्चों की छुट्टी कर दी जाती थी । बाल मन को और क्या चाहिए ?
अचानक प्रधानाध्यापक की आवाज ने शैलेन्द्र जी को अतीत से लाकर वर्तमान मे खङा कर दिया।
उन्हें उनके कर्तव्यों का बोध कराया गया। उन्हें उनकी निर्धारित कक्षा मे जाने का निर्देश दिया गया।
बच्चों ने उनका उत्साह के साथ स्वागत किया। शैलेंद्र जी ने बच्चों को अपने आप से परिचित कराया। तत्पश्चात बच्चों से उनका परिचय प्राप्त किया।
शैलेन्द्र ने बच्चों को बङे अनोखे ढंग से विषय को समझाया । जिसका असर ये हुआ कि पहले दिन ही बच्चे उनके मुरीद हो गए।
शैलेन्द्र जिन उद्देश्यों को लेकर शिक्षक बने थे एक हफ्ते मे ही उन्हे अपनी मंजिल दूर भागती दिखाई थी।मानों उनकी मंजिल आँखो से ओझल हो गयी है।
विद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहा थी । शैलेंद्र को मिलाकर कुल तीन ही शिक्षक थे। एक हैडमास्टर ; एक शिक्षा मित्र और स्वयं शैलेन्द्र । हैड मास्टर साहब की उमर हो गयी थी सो एक हफ्ते बाद ही सेवानिवृत्त हो गए। शैलेंद्र जी कार्यवाहक हैडमास्टर बना दिए गए। शिक्षामित्र का अपना अलग रोना था। जितना भत्ता उतना ही अध्यापन । उपर से दूसरे सरकारी कार्य । गाँव गाँव घूमकर लोगो की विभिन्न योजनाओं की सूचियाँ तैयार करना।
शैलेन्द्र जी को सरकारी कागजों से फुरसत ही नही मिलती की बच्चों की कक्षा मे जाए।
बेबश शैलेन्द्र जी ने अध्यापन से अधिक सरकारी कागजों को रंगने ही श्रेयस्कर समझा । यथार्थ मे बच्चे भले ही नही पढ़ रहे थे पर सरकारी कागजों मे उनका सर्वांगीण विकास हो रहा था। बच्चे मेधावी बन रहे थे। अफसर भी खुश थे प्राथमिक विद्यालय ठीक ढंग से चल रहा है।
शैलेन्द्र जी बहुत निराश हो गए। चाहते हुए भी अपने सपनों को पूरा नही कर पा रहे थे। बच्चों को नही पढ़ा पा रहे थे।
हार कर उन्होंने भी औपचारिकता पूरा करना ही अपना कर्तव्य समझने लगे और सही मायने सरकारी अध्यापक बन गये और मास्टर साहब ही उनकी पहचान बन गया।


© Rakesh Kushwaha Rahi