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दूर जाती गौरय्या
हवा मन को भाने लगी है (केवल दोपहर में)
सर्दी की धूप गुनगुनी हो गई है।
आश्चर्य!सुखद *आश्चर्य! इस गुनगुनी धूप में
गौरय्या मेरी बगिया में आने लगी है
फुदकने और चहचाहने लगी है
उसका ये फुदकना ये चहचहाना
मेरा सारा तनाव काफूर कर जाता है
वो मेरे साथ घुल -मिल गई है
बगिया में मेरे आने से उड़ती नहीं है
बगिया में कहीं घौंसला बनाने
का विचार बनाने लगी है
मैंने भी उसके लिए
बर्ड फिडर लगा दिया है
एक बर्तन में पानी भर दिया है
कोयल की कुह- कुह
आम पर बौर आ गये
बताने लगी है
कबूतर छत पर उतरने लगे हैं
पानी और भीगे मूंग का
मजा चखने लगें हैं
ये सब देखने और उसका
आनन्द लेने के लिए
हम अक्सर हम अपनी
बगिया और छत पर
जाने लगें हैं
*आश्चर्य! हम मानवों ने इस मासूम पंछी के शहर में आने के सब रास्ते बंद कर दिए हैं। मोबाइल से निकलने वाली रेंज से गौरय्या का दम घुटता है इसलिए ये मासूम प्राणी शहर से दूर चला गया है।
शहरों में ईमारतों के जंगल में इस पक्षी के लिए आवास की सुविधा समाप्त हो गई है, कहीं घोंसला बनाने की जगह नहीं है
अब वो समय नहीं रहा जब चिड़िया
घोंसला बनाती थी तो बड़े तो बड़े, बच्चे भी उसकी और उसके अंडों की रक्षा करते थे।उसे
उत्सुकता से देखते थे। उस के लिए पानी उबले
हुए चावल और पता नहीं क्या - क्या सामान ले
जाते थे ।
शहर में बढता हुआ पोलूशन बिगड़ता हुआ पर्यावरण (अब तो सर्दी गर्मी बरसात के
समय भी बदल गये हैं) ने इस छोटी सी गौरय्या
को शहर से दूर भगा दिया है। इतनी दुश्वारियां के बावजूद यूं इस छोटी सी चिड़िया का,इस मासूम सी गौरय्या का यूं मेरी बगिया में आना आश्चर्य तो होगा ही।






© सरिता अग्रवाल

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