संक्रांति काल -पाषाण युग ५
भाँऊ के भौंकने की ध्वनि ने जादौंग की तंद्रा भंग की, वो एक वृक्ष के सूखे तने पर बैठ कर बारिश में भीगते हुए अम्बी के साथ करे अपने रूखे व्यवहार पर पछता रहा था । भाँऊ के भौंकने का तरीका जादौंग को स्पष्ट कर चुका था कि अम्बी ठीक नहीं है । वह बिना पल भी गँवाए अपनी गुफा की ओर दौड़ पड़ा ।
भाऊँ और जादौंग दौड़ते हुए गुफा की और जा रहे थे। अम्बी की दर्द से भरी चीख सुनकर जादौंग का दिल बेठने लगा था की गुफा द्वार के पास चमकती दो जोड़ी आँखों को देख कर अनिष्ट की आशंका से काँप उठा... उसने वहीं से अपना अस्त्र उन चमकती आँखों पर फैंक कर मारा।
तेजी से आता हुआ जादौंग का भाला आगे वाले हैवान के जिस्म में घुसकर उसे काफी दूर तक खींचता चला गया दूसरा शायद खतरा भाँप कर पहले ही भाग चुका था ।सुरक्षित होने के अहसास के साथ धीरे धीरे अम्बी की आँखें मुँदने लगीं ।
जादौंग ने बेसुध अम्बी को कंधे पर उठाया ही था कि अपने प्रेम के साकार स्वरूप पर दृष्टि पड़ी , जिनका रोना भी घबराहट में सुन नहीं पाया था वह ...आँखों से आँसुओं के साथ उसकी समस्त कुंठाएँ और अपराधबोध पूरी तरह बह गया था । पिता बनने...