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संक्रांति काल -पाषाण युग ५

भाँऊ के भौंकने की ध्वनि ने जादौंग की तंद्रा भंग की, वो एक वृक्ष के सूखे तने पर बैठ कर बारिश में भीगते हुए अम्बी के साथ करे अपने रूखे व्यवहार पर पछता रहा था । भाँऊ के भौंकने का तरीका जादौंग को स्पष्ट कर चुका था कि अम्बी ठीक नहीं है । वह बिना पल भी गँवाए अपनी गुफा की ओर दौड़ पड़ा ।

भाऊँ और जादौंग दौड़ते हुए गुफा की और जा रहे थे। अम्बी की दर्द से भरी चीख सुनकर जादौंग का दिल बेठने लगा था की गुफा द्वार के पास चमकती दो जोड़ी आँखों को देख कर अनिष्ट की आशंका से काँप उठा... उसने वहीं से अपना अस्त्र उन चमकती आँखों पर फैंक कर मारा।

तेजी से आता हुआ जादौंग का भाला आगे वाले हैवान के जिस्म में घुसकर उसे काफी दूर तक खींचता चला गया दूसरा शायद खतरा भाँप कर पहले ही भाग चुका था ।सुरक्षित होने के अहसास के साथ धीरे धीरे अम्बी की आँखें मुँदने लगीं ।


जादौंग ने बेसुध अम्बी को कंधे पर उठाया ही था कि अपने प्रेम के साकार स्वरूप पर दृष्टि पड़ी , जिनका रोना भी घबराहट में सुन नहीं पाया था वह ...आँखों से आँसुओं के साथ उसकी समस्त कुंठाएँ और अपराधबोध पूरी तरह बह गया था । पिता बनने का अहसास तो हर काल में समान ही सुख देता है ना...फिर चाहें सभ्यता कोई भी हो ..भावना रिवाजों के दायरे में कहाँ आती हैं।

बारिश पूरी रात पड़ती रही , प्रकाश के देवता ने धरा पर लालिमा बिखरा दी थी ...जितनी भयानक रात उतनी ही खुशनुमा सुबह है आज । जादौंग नन्हे शिशुओं को निहारता अम्बी के बालों को सुलझाने का यत्न करता उसके सिर
को सहला रहा था । अम्बी पुलकित नयनों से शिशुओं को निहार रही थी।


प्रगति का पहिया

रात की घटना ने जादौंग को बड़ा सबक दिया था ।उसने सुरक्षा के विषय में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया । धीरे धीरे प्रगति करते हुए जादौंग के परिवार में भाऊँ के अतिरिक्त  दो कुत्ते नर और एक मादा कुत्ती भी जुड़ चुके
थे ।

पहले गुफा मानवों का ये परिवार जो पूरी तरह से शिकार पर निर्भर था,अब फलों व कन्दमूलों का उपयोग ज्यादा बेहतर तरीके से करना सीख गए थे। चूँकि अम्बी की अपनी जननी धारा के समय से ही वनस्पतियों मे अधिक रूचि रहती थी ,अनेक पेड़ पौधों व जड़ों के चिकित्सकीय गुणों को समझने लग गयी थी । लकड़ी के पहिये के अविष्कार से शिकार व फल, कंद-मूलादि एकत्रित करना सहज हो
गया था ,बच्चों ने तो अपने खेलने के लिए भी गाड़ी बना ली थी । खाल के वस्त्र से शरीर ढंकना भी प्रचलन में आ चुका था ।

अब अंबी ,जादौंग के साथ शिकार पर कम जाती थी , अपने बच्चों के साथ वन से फलों व कंदमूलादि इकट्ठा करती ,और गुफा पर लौट कर आग जला कर उन जडों व फलों पर प्रयोग करती ।

जादौंग शिकार से आकर बच्चों के साथ मिल कर अम्बी को फलों  और जड़ो को भूनते  व उबालते देखता तो हँस कर खिल्ली उड़ाता । जिससे चिढ़कर अम्बी मूँह को गुब्बारे की तरह फुला लेती थी । बच्चे सारे के सारे जादौंग पर
झूल जाते तो वह अपने लम्बे बाजुओं पर उन्हे झुलाता और पूरी गुफा बच्चों की किलकारियों से गूँज उठती ।


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ऐसा नहीं है की अन्य कहीं और गुफामानव भी ऐसा ही जीवन जी रहे होंगे , दरअसल सम्पूर्ण धरा पर ही सभ्यताएँ अस्तित्व में आ चुकी थीं और हम यह नहीं कह सकते की समान रूप से ही विकसित रही हों । बहुत से कारक जैसे भौगोलिक स्थिति ,वातावरण,पशुओं की उपलब्ध जातियाँ आदि उनके विकास की गति में निश्चित रूप से फर्क लाते रहे होंगे ।

पर चूँकि उस काल का मनुष्य पशुओं से मात्र इतनी भिन्नता रखता था की उसने जीवन में सामाजिकता की जरूरत को समझ लिया था , वह छोटे स्तर पर यंत्रों का इस्तेमाल व आग का प्रयोग करने का ज्ञान रखने लगा था। आमतौर पर आदिम मानवों को अपने आसपास का जितना दिखाई देता था ,शायद उसके आगे की दुनिया की वे कल्पना ही नहीं कर पाते होंगे। अम्बी व जादौंग का परिवार अधिक तेज गति से विकास कर रहा था क्योंकि अम्बी की बौद्धिक क्षमता उस काल के मानवों से बहुत बेहतर थी और जादौंग की भी कल्पनाशीलता अद्भुत थी । वह दोनों ही भावी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया करते और उसी आधार पर नई तैयारियां किया करते ।

वैसे तो अम्बी और जादौंग के लिए तो उनके पास उपस्थित उनका परिवार ही उनका समाज था पर चूँकि वे पूरी तरह अपने परिवार की संख्या और क्षमता पर ही निर्भर थे ,उनके द्वारा हासिल प्रत्येक उपलब्धि उनके विशेष कोशल का प्रतीक थी।  उनकी प्रत्येक खोज उनकी आवश्यकताओं पर केन्द्रित थीं ।
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क्रमशः

अभी कई उतार चढ़ाव बाकी हैं कहानी में, कुछ नये किरदार और नये घटनाक्रम कहानी को नया रंग देने वाले हैं... पढ़ते रहिए,जुड़े रहिए। धन्यवाद
© बदनाम कलमकार
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