उम्र से परे जी रहे उस बच्चे को, "बाल दिवस की शुभकामनाएं"
इतनी बड़ी हो गई हो फिर बचपना क्यूं है , तुम्हारे अंदर।
तुमको नही लगता तुमको इसे अब छोड़ देना चाहिए ।
"नही"...😌
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
मेरा घर को करीब 6 महीने पहले छोड़ना बहुत ही ज्यादा प्रश्नदायक था।
मेरे लिए भी और मेरे अभिभावकों के लिए भी, और कुछ टांग अड़ाने वाले रिश्तेदारों के भी।
क्या मैं वहां अकेले रह पाऊंगी, खुद से अपनी चीज का ध्यान रख पाऊंगी, क्या अपने कीमती सामान व्यवस्थित ढंग से रख पाऊंगी।
या घर छोड़ने के कुछ वक्त बाद ही हार मानकर लौट आऊंगी।
"तुम बाहर जाकर पढ़ पाओगी"?
"नही नही, तुमको तो छोटी सी चीज भी याद नहीं रहती"
"तुम्हारा ध्यान ही कहां रहता है"
" इसको जीजी के घर पे ही छोड़ देना, वही से पढ़ लेगी"
" हां अकेले हॉस्टल में ये तो नही रह पाएगी"
"तुमको तो खुद से कुछ भी करना नही आता है"
"यही का फॉर्म डाल दो, बाहर जाकर क्या करोगी"
इन हजारों कश्मकश के बीच, मुझे फैसला लेना था , मैं बाहर खुद को संभाल पाऊंगी या नहीं?
बाकी लड़कियों की तरह तेज जो नही थी, बस घर की चार दिवारी में बंद रखना खुद को बहुत पसंद था।
पर मन का एक उत्सुक बच्चा हमेशा ही आगे बढ़ने को , नया सीखने को तैयार था।
पर लोगो के किए सवाल, और खुद पर कम भरोसा, मुझे अपने पाव पीछे खींचने को मजबूर कर रहा था।
" हां ये लोग सही तो कह रहे हैं"
"मै शायद खुद को ना संभाल पाऊं "
मैने एक नही हजार बार, खुद पर शक किया।
पर किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था,
बड़े भैया के समझाने पर मैंने बाहर फॉर्म डाल ही दिया।
और इत्तेफाक से मेरा सेलेक्शन भी हो गया।
किसी तरह मैंने खुद को संभालकर, मां से एक साल का वक्त मांगा खुद को परखने के लिए।
मां की समझदारी, और पापा के खुले विचारों ने मुझे बाहर भेजना सही समझा।
आज छह महीने बाद, मैं खुद पे काफी बदलाव महसूस कर सकती हूं।
इसका श्रेय मैं खुद के अंदर सदैव जिंदा रहने वाले बच्चे को दूंगी।
जो मुझे कभी महसूस नही होने देता की मैं अपने परिवार से मीलों दूर हूं।
बोर होने पर, इसकी कलाकारिया, मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर देती हैं।
यही बच्चा है जो, जिंदगी में खेलते खेलते गिर जाए तो खुद फटाक से खड़ा होकर दोबारा खेलने लगता है।
यह वो बच्चा है जो, खुद की गलतियों पे ठहाके लगाकर हस्ता है।
ये बच्चा और बचपना मैं सदैव खुद में जिंदा रखना चाहूंगी। और आज मैं इसी बच्चे और सभी में जिंदा उस बच्चो को, जिन्हे दूसरों द्वारा परखा गया है "बाल दिवस" की बहुत सारी शुभकामनाएं देती हूं।
और चाहूंगी, की आप सब खुद में रह रहे बच्चे को हमेशा खुल के जीने की आजादी दे।
क्योंकि शायद यही आपके मन की आवाज हो सकती है। जो हमेशा कुछ नया करने को कहती है। और हम खुद को आंक कर, इसकी आवाज को दबाते जाते हैं।
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
बहुत भाग्यशाली हूं, मुझे बाहर रहकर पढ़ने का अवसर मिला। इसके लिए मैं अपने परिवारवालों के लिए हमेशा आभारी रहूंगी।
#nits_longform
© nitisparkle_
तुमको नही लगता तुमको इसे अब छोड़ देना चाहिए ।
"नही"...😌
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मेरा घर को करीब 6 महीने पहले छोड़ना बहुत ही ज्यादा प्रश्नदायक था।
मेरे लिए भी और मेरे अभिभावकों के लिए भी, और कुछ टांग अड़ाने वाले रिश्तेदारों के भी।
क्या मैं वहां अकेले रह पाऊंगी, खुद से अपनी चीज का ध्यान रख पाऊंगी, क्या अपने कीमती सामान व्यवस्थित ढंग से रख पाऊंगी।
या घर छोड़ने के कुछ वक्त बाद ही हार मानकर लौट आऊंगी।
"तुम बाहर जाकर पढ़ पाओगी"?
"नही नही, तुमको तो छोटी सी चीज भी याद नहीं रहती"
"तुम्हारा ध्यान ही कहां रहता है"
" इसको जीजी के घर पे ही छोड़ देना, वही से पढ़ लेगी"
" हां अकेले हॉस्टल में ये तो नही रह पाएगी"
"तुमको तो खुद से कुछ भी करना नही आता है"
"यही का फॉर्म डाल दो, बाहर जाकर क्या करोगी"
इन हजारों कश्मकश के बीच, मुझे फैसला लेना था , मैं बाहर खुद को संभाल पाऊंगी या नहीं?
बाकी लड़कियों की तरह तेज जो नही थी, बस घर की चार दिवारी में बंद रखना खुद को बहुत पसंद था।
पर मन का एक उत्सुक बच्चा हमेशा ही आगे बढ़ने को , नया सीखने को तैयार था।
पर लोगो के किए सवाल, और खुद पर कम भरोसा, मुझे अपने पाव पीछे खींचने को मजबूर कर रहा था।
" हां ये लोग सही तो कह रहे हैं"
"मै शायद खुद को ना संभाल पाऊं "
मैने एक नही हजार बार, खुद पर शक किया।
पर किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था,
बड़े भैया के समझाने पर मैंने बाहर फॉर्म डाल ही दिया।
और इत्तेफाक से मेरा सेलेक्शन भी हो गया।
किसी तरह मैंने खुद को संभालकर, मां से एक साल का वक्त मांगा खुद को परखने के लिए।
मां की समझदारी, और पापा के खुले विचारों ने मुझे बाहर भेजना सही समझा।
आज छह महीने बाद, मैं खुद पे काफी बदलाव महसूस कर सकती हूं।
इसका श्रेय मैं खुद के अंदर सदैव जिंदा रहने वाले बच्चे को दूंगी।
जो मुझे कभी महसूस नही होने देता की मैं अपने परिवार से मीलों दूर हूं।
बोर होने पर, इसकी कलाकारिया, मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर देती हैं।
यही बच्चा है जो, जिंदगी में खेलते खेलते गिर जाए तो खुद फटाक से खड़ा होकर दोबारा खेलने लगता है।
यह वो बच्चा है जो, खुद की गलतियों पे ठहाके लगाकर हस्ता है।
ये बच्चा और बचपना मैं सदैव खुद में जिंदा रखना चाहूंगी। और आज मैं इसी बच्चे और सभी में जिंदा उस बच्चो को, जिन्हे दूसरों द्वारा परखा गया है "बाल दिवस" की बहुत सारी शुभकामनाएं देती हूं।
और चाहूंगी, की आप सब खुद में रह रहे बच्चे को हमेशा खुल के जीने की आजादी दे।
क्योंकि शायद यही आपके मन की आवाज हो सकती है। जो हमेशा कुछ नया करने को कहती है। और हम खुद को आंक कर, इसकी आवाज को दबाते जाते हैं।
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बहुत भाग्यशाली हूं, मुझे बाहर रहकर पढ़ने का अवसर मिला। इसके लिए मैं अपने परिवारवालों के लिए हमेशा आभारी रहूंगी।
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