अभी बहुत बाकी है।
इस लेख के माध्यम से मैं कहना चाहती हूं कि
महिलाओं के कल्याण में अभी बहुत बाकी है।
आज देखा जाए तो दुनिया के हर देश, राज्य और शहर में महिलाओं की काफ़ी उन्नति हुई है। एक दो छोड़कर हर क्षेत्र में महिलाओं को स्थान मिला है। मगर सवाल यह है कि क्या महिलाएं सारे अधिकार के दावेदार हैं ?
क्या उन्हें कोई परेशानी नहीं है?
खासकर हमारे देश में अभी भी बहुत सारी जगह हैं जहां महिलाओं का शोषण, उनपर
अत्याचार अतिरिक्त मात्रा में होती है।
हां मानलेते हैं कि कुछ पढ़े-लिखे लोग अपनी बेटी और बहुओं को पूरी आज़ादी दे चुके हैं कि
वे समाज में अपने तरीके से जीएं और अपनी
गरिमा को अर्जन करें। कुछ बेटियों के ससुराल वाले उन्हें अपनी बेटी जैसी ही देखभाल करते हैं। उनको उन्नति की ओर बढ़ने में मदद करते हैं। बहुत सारे पति भी उनका साथ देते हैं।
बहुत सारी बहुएं नौकरी कर रही है जिसके लिए ससुराल वाले रूकावट पैदा नहीं करते हैं।
यह सच है कि आजकल के पढ़े-लिखे परिवार के लोग दहेज के खिलाफ है। उन्हें सिर्फ एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए।
मगर आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनका समाज में नाम है।वे कुछ ऊंचे पद पर प्रतिष्ठित हैं।
वे महिलाओं के प्रोग्राम में बड़े-बड़े भाषण देते हैं। महिला कल्याण समिति को अनुदान देते हैं।जिनको समाज की महिलाएं भगवान स्वरूप मानती है।उनका व्यवहार अपने घर की महिलाओं के साथ अत्यंत निंदनीय है।
वे क्लब पार्टी में जाकर बाहरी महिलाओं के साथ फूर्ति करते हैं और घर आकर अपनी पत्नी को मारते पीटते हैं,गाली देते हैं, जाहिर कहकर उन्हें अपमान करते हैं। अपनी बहू बेटी
को बाहर जाने नहीं देते हैं।उनका पढ़ाई लिखाई बंद कर देते हैं।
सिर्फ पुरुष ही नहीं कुछ औरतें भी खुद समाज
के लिए कांटे स्वरुप हैं। अपने बेटों की शादी के समय वे खुलकर दहेज मांगती हैं। अगर बहू
अच्छा दहेज लाई तो उसे सांस बहुत ही अच्छी तरह रखती हैं, और अगर दहेज में ज़रा सी कमी हुई तो अत्याचार शुरू हो जाती है।
गांव में तो रोज ही ऐसा घर देखने को मिलता है जहां सांस ननद का जूलूम होते रहता है।
कुछ बेटियों को अपने परिवार में भी बहुत कुछ सहना पड़ता है। कुछ लोग रूढ़िवादी के चपेट में होने के कारण बेटी को बाहर जाने नहीं देना चाहते हैं।वे सोचते हैं कि अगर कुछ ऐसा वैसा हो जाएगा तो उनका नाक कट जाएगा।
कुछ भाई भी बहन का बाहर जाना दूसरे से मेल मिलाप रखना पसंद नहीं करते हैं। चाहे वे खुद बाहर मौज मस्ती करके घूमते हैं।ऐसे परिवार के लोगों का एक मात्र उद्देश्य होता है कि बेटी की शादी कराके दायित्व मुक्त हो जाना। चाहे उस बेटी को नरक यातना सहना पड़े।
औरतों के साथ होने वाली अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना खुद औरत ही कर सकती है। ऐसा अन्याय का विरोध करना और ऐसे पीड़ित महिलाओं का उन्नति करना ही समाज के हर सुशिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है।
सरकार तो बहुत चेष्टाएं कर रही है अगर हम उनका साथ दे तो शायद ऐसी असहाय महिलाओं का दर्द थोड़ा कम हो सकता है।
महिलाओं के कल्याण में अभी बहुत बाकी है।
आज देखा जाए तो दुनिया के हर देश, राज्य और शहर में महिलाओं की काफ़ी उन्नति हुई है। एक दो छोड़कर हर क्षेत्र में महिलाओं को स्थान मिला है। मगर सवाल यह है कि क्या महिलाएं सारे अधिकार के दावेदार हैं ?
क्या उन्हें कोई परेशानी नहीं है?
खासकर हमारे देश में अभी भी बहुत सारी जगह हैं जहां महिलाओं का शोषण, उनपर
अत्याचार अतिरिक्त मात्रा में होती है।
हां मानलेते हैं कि कुछ पढ़े-लिखे लोग अपनी बेटी और बहुओं को पूरी आज़ादी दे चुके हैं कि
वे समाज में अपने तरीके से जीएं और अपनी
गरिमा को अर्जन करें। कुछ बेटियों के ससुराल वाले उन्हें अपनी बेटी जैसी ही देखभाल करते हैं। उनको उन्नति की ओर बढ़ने में मदद करते हैं। बहुत सारे पति भी उनका साथ देते हैं।
बहुत सारी बहुएं नौकरी कर रही है जिसके लिए ससुराल वाले रूकावट पैदा नहीं करते हैं।
यह सच है कि आजकल के पढ़े-लिखे परिवार के लोग दहेज के खिलाफ है। उन्हें सिर्फ एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए।
मगर आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनका समाज में नाम है।वे कुछ ऊंचे पद पर प्रतिष्ठित हैं।
वे महिलाओं के प्रोग्राम में बड़े-बड़े भाषण देते हैं। महिला कल्याण समिति को अनुदान देते हैं।जिनको समाज की महिलाएं भगवान स्वरूप मानती है।उनका व्यवहार अपने घर की महिलाओं के साथ अत्यंत निंदनीय है।
वे क्लब पार्टी में जाकर बाहरी महिलाओं के साथ फूर्ति करते हैं और घर आकर अपनी पत्नी को मारते पीटते हैं,गाली देते हैं, जाहिर कहकर उन्हें अपमान करते हैं। अपनी बहू बेटी
को बाहर जाने नहीं देते हैं।उनका पढ़ाई लिखाई बंद कर देते हैं।
सिर्फ पुरुष ही नहीं कुछ औरतें भी खुद समाज
के लिए कांटे स्वरुप हैं। अपने बेटों की शादी के समय वे खुलकर दहेज मांगती हैं। अगर बहू
अच्छा दहेज लाई तो उसे सांस बहुत ही अच्छी तरह रखती हैं, और अगर दहेज में ज़रा सी कमी हुई तो अत्याचार शुरू हो जाती है।
गांव में तो रोज ही ऐसा घर देखने को मिलता है जहां सांस ननद का जूलूम होते रहता है।
कुछ बेटियों को अपने परिवार में भी बहुत कुछ सहना पड़ता है। कुछ लोग रूढ़िवादी के चपेट में होने के कारण बेटी को बाहर जाने नहीं देना चाहते हैं।वे सोचते हैं कि अगर कुछ ऐसा वैसा हो जाएगा तो उनका नाक कट जाएगा।
कुछ भाई भी बहन का बाहर जाना दूसरे से मेल मिलाप रखना पसंद नहीं करते हैं। चाहे वे खुद बाहर मौज मस्ती करके घूमते हैं।ऐसे परिवार के लोगों का एक मात्र उद्देश्य होता है कि बेटी की शादी कराके दायित्व मुक्त हो जाना। चाहे उस बेटी को नरक यातना सहना पड़े।
औरतों के साथ होने वाली अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना खुद औरत ही कर सकती है। ऐसा अन्याय का विरोध करना और ऐसे पीड़ित महिलाओं का उन्नति करना ही समाज के हर सुशिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है।
सरकार तो बहुत चेष्टाएं कर रही है अगर हम उनका साथ दे तो शायद ऐसी असहाय महिलाओं का दर्द थोड़ा कम हो सकता है।