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कुछ नहीं...
अक्सर ऐसा होता है कि शब्द तो पूरे वेग से बहने को उमड़ रहे होते है l हृदय में ना जाने कितने तूफ़ाँ उठ रहे होते है लेकिन किसी के पूछने पर, हम सिर्फ कहते है, " कुछ नहीं " I
ये दो शब्द अपने अन्दर कितना कुछ छिपाये होते है, ये समझने की अक्सर कभी भी कोई भी चेष्टा ही नहीं करता I
कभी सोचा है, जब कोई इंसान अपने मन को बांध कर ऐसा करता है तो वो कितनी पीड़ा में होता है l ऐसा कहने वाले के चेहरे पर गौर करे l वो अपनी मायूस निगाहों को या तो झुका रखा होगा या यूँ ही दूसरी ओर देख रहा होगा l चेहरा भाव विहीन लगता होगा लेकिन ध्यान से देखेंगे तो कई मिश्रित भाव करवटे ले रहे होंगे l कुछ छिपे शब्द लगभग चिल्ला रहे होंगे कि क्यूँ पूछ रहे हो, क्या फायदा पूछने का, क्या फर्क पड़ जायेगा यदि बता भी दिया तो, हमेशा की तरह सुन कर छोड़ना ही तो होता है l
अक्सर ये शब्द आप नारियों की मुँह से सुनेंगे l चाहे वो रिश्ते में आपकी कोई भी हो l ऐसा नही है कि इस अवस्था से पुरुष नहीं गुजरते परंतु स्त्रियाँ इस मंथन का शिकार ज्यादा होती है l
कारण मामूली है l मानसिक रूप से मजबूत होने के बावजूद वो हर रूप में पुरुष पर भावनात्मक रूप से आश्रित होती है l
और इसी की कमी उसे खामोश करती जाती है l माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, पुत्री, रिश्ता कोई भी हो, यदि आपके सामने ये दो शब्द आते है, तो समझ लीजिये, कहीं ना कही उनका वो भरोसा टूट गया कि आप उनकी हर बात सुनते और समझते है या उन्हें एक पल में उस अनपेक्षित क्षण या अवस्था से बाहर निकाल सकते है l आपसे बेखौफ बात करना शायद अब अर्थहीन हो गया है l
ये घुटन उन्हें ना केवल खुद में ही सीमित करती जाती है, बल्कि कहीं ना कहीं मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर करती जाती है l जिसका असर आप शारीरिक रूप से तो प्रत्यक्ष देख सकते है पर जो नहीं दिखता, वो होता आपका बिखरता रिश्ता l
आसान ना ले इस " कुछ नहीं " को l ये चेतावनी होती है किसी के स्वयम में सिमट जाने की l
ये हमारा दृष्टिकोण है, आपका भी हो, ये जरूरी नहीं l
त्रुटि के लिए क्षमा 🙏🏻

© * नैna *