स्नेह का सागर मातृत्व
इस धरती पर यदि परमात्मा का कोई रूप है तो वह मां ही है और दूसरा कोई नहीं । मातृत्व इसमें का वह सागर है जिसमें दया करुणा क्षमा व स्नेह की अनगिनत लहरें हिलोरे लेती रहती है मातृत्व 'जीवन और जगत्' की समस्त संवेदनाओं में अंकुरित होती है सृष्टि की सारी संभावनाएं मातृत्व से ही अभिव्यक्त होती हैं सभी शास्त्रों में भी मां को भगवान से भी बड़ा माना गया है मा ही इस धरा पर भगवान का रूप है इसलिए कहा जाता है कि भगवान सभी जगह नहीं पहुंच सकता है इसलिए उसने मां की रचना की मां की ममता का कोई छोर नहीं है मा ही गुरु है और जो सब सर्व प्रथम शिशु को ज्ञान का बोध करवाती है जब कभी दुख का ताप सताता है तब मा ही शीतल छांव बन जाती है ।
ठंडी हवा के झोंकों जैसी शीतल मां
कभी लगती बसंत फूआरो जैसी मां
मा की एक ही है कहानी
इस दुनिया में नहीं कोई मां जैसा सानी
ठंडी हवा के झोंकों जैसी शीतल मां
कभी लगती बसंत फूआरो जैसी मां
मा की एक ही है कहानी
इस दुनिया में नहीं कोई मां जैसा सानी