मुसन्निफ
लिख रहे थे कलम
वह बस प्रबुद्ध था
समय से थोड़ा आगे
शायद बुद्ध था
कुछ बह रही थी उसकी ,
सोच में कहीं
वह उन्हीं धाराओं में ,
लगा मुग्ध सा
बहता गया,
बस बहता गया
आंखों में सूर्य की
प्रभात हो रही
पुनर्जागरण सी
हालात हो रही
कुछ ना कुछ घटित
उसके साथ हुआ था शायद
कुछ अजीब सी
बात हो रही
कायनात को वह
अब सुन सकता था
कह कह सकता था अपनी
और सबकी सुन सकता था
एक अजीब मुस्कान चेहरे पर
थी उसकी
आभा से चेहरे के
सब मंत्रमुग्ध था
रात में दिन सी
हालात हो रही
पुनर्जागरण की
प्रभात हो रही
लिख रहे थे कलम
वह बस प्रबुद्ध था
समय से थोड़ा आगे
शायद बुद्ध था।
© geetanjali
वह बस प्रबुद्ध था
समय से थोड़ा आगे
शायद बुद्ध था
कुछ बह रही थी उसकी ,
सोच में कहीं
वह उन्हीं धाराओं में ,
लगा मुग्ध सा
बहता गया,
बस बहता गया
आंखों में सूर्य की
प्रभात हो रही
पुनर्जागरण सी
हालात हो रही
कुछ ना कुछ घटित
उसके साथ हुआ था शायद
कुछ अजीब सी
बात हो रही
कायनात को वह
अब सुन सकता था
कह कह सकता था अपनी
और सबकी सुन सकता था
एक अजीब मुस्कान चेहरे पर
थी उसकी
आभा से चेहरे के
सब मंत्रमुग्ध था
रात में दिन सी
हालात हो रही
पुनर्जागरण की
प्रभात हो रही
लिख रहे थे कलम
वह बस प्रबुद्ध था
समय से थोड़ा आगे
शायद बुद्ध था।
© geetanjali
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