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जीवन की पहचान
ऐसा लगा कि प्रकृति रूष्ट है हम पर। जैसे ही भूकंप के जोरदार झटके से
धरती बुरी तरह कंपकपाई, तब इस बात का अहसास हुआ।

जितने संसाधन जुटाए हैं हमने
अपने अनूठे ज्ञान से, बसाए शहर बसाई बस्ती पर वो चाहे तो पल भर में मिटा दे सबकी हस्ती।

कितना ही क्यों न आज आगे बढ़ गया इंसान और कुछ तो ऐसे भी हुए जो खुद को ही कहलाना चाहते हैं भगवान
पर नकली असली की मत भूलो पहचान।

जिसने है ब्रह्मांड रचा, जो सब में है विराजमान केवल वही है भगवान ।

हम सब परम पिता की हैं संतान। उसी से बिछड़ कर आये थे और वापिस उसे पाना है सबसे बड़ा वरदान ।

© PJ Singh