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एक घर बसता ,दो जीवन संवरते !!
आज हरि जैसा है वह पहले ऐसा नहीं था आज की तरह कूड़ा कचरा नहीं बीनता ,लोहा नहीं पीटता ।लोगों से पैसे दो पैसे नहीं माँगता । वह बहुत संयत ,मेहनती था मगर पढ़ाई के मामले में नहीं के बराबर ।जैसे तैसे 6 टी कक्षा तक पास होता गया पर 7 वी कक्षा 2 बार फेल होने के बाद भी पास नहीं कर सका !

वह यहाँ वहाँ मजदूरी कर अपना समय व्यतीत करने लगा
दैनिक श्रमिक के रूप में किसी ने उसे एक साहब के वहाँ काम दिलवा दिया था !
उसके बोलने और काम करने की शैली से सब प्रसन्न थे !
High society के लोगों के रहन सहन से प्रभावित था ही वह
अच्छा पैसा मिलने,कम खर्च करने ,बचत करने से उसकी स्थिति सुधरती गई !
दैनिक आवश्यकताओं के सारे संसाधन तकरीबन उसने जुटा ही लिए थे ।
इसी बीच गलत संगत के कारण उसे नशे की आदत हो गई थी जो धीरे धीरे लत में बदलती गई ! सारा पैसा अपने ऊपर ही खर्चने लगा था फलस्वरूप घर में माँ पिता भी जो कि मजदूर थे वे भी नाराज रहने लगे थे ।

हर माता पिता सोचते है कि उनका बेटे का जैसे भी हो समय रहते ब्याह हो जाए !घर पर सुशील बहु आ जाए !
घर पर बहु आएगी ,बहु आने के साथ ही जिम्मेदारी का एहसास भी इसे होगा और शायद यह पटरी पर लौट जाए !
शादी का स्वप्न उसने भी देखा था उसके रिश्ते भी आने लगे थे परन्तु उसकी कुटेब ने सारे स्वप्नों पर पानी फेर दिया था !

निकट की रिश्तेदारी में ही एक सज्जन भंवर लाल को यह लड़का कुछ अच्छा सा लगा अप्रत्यक्ष रूप से उसने खोजबीन की , लड़की वाले किसी स्त्रोत से जानकारी जुटा ही लेते है । यहाँ भी देखने सोचने का पर्याप्त समय नहीं मिलेगा !!उसे भी जल्दी थी सो वह बस कामकाजी लड़का देख रहा था उसकी खोज हरि के यहाँ आकर लगभग खत्म हुई ऐसा कह सकते हैं ।
थोड़ी बहुत मीनमेख के बाद वह संबंध के लिए राजी हुआ !

समय खिसकता जा रहा था लम्बे अर्से तक वह व्यक्ति भी
वापस नहीं लौटा तो हरि ने लड़की वालों से फोन कर कहा कि आप तिलक करने नहीं पधारे !

लड़की के पिता ने थोड़ी हाँ ना के बाद उसकी बात मान ली फिर भी उसने कहा कि हर माँ बाप अपनी हैसियत के अनुसार अपनी बेटी को साहब चाहे गरीब हो पर
बेटी को नाक,कान की रकम तो देता ही मैं भी दूँगा अगर मंजूर हो तो बात आगे बढ़ाए !

एक नियत तिथि के बाद सम्बन्ध का कार्यक्रम तय हुआ
अपने घर पर ही कार्यक्रम रखा जाना था चूँकि घर बहुत
छोटा था पैर रखने की जगह भी नहीं बचती थी !गर्मी का मौसम था रात ठहर कर , दूसरे दिन कार्यक्रम सम्पन्न किया जाना था । रात्रि भोजन के बाद ड्रिंक के साथ वार्ताओं के
दौर होने थे । रात गहराने लगी थी लड़की लड़के दोनों पक्षों
के लोग एक जाजम पर बैठे !
दोनों और के मध्यस्थ लोग भी टुन्न हुए बैठे थे ।हरि भी वहाँ पूर्ण वेग से पहुँचा बातों ही बातों में अपनी सारी बातें ,प्रशंसात्मक रूप से कहना शुरू की ,रात का समय था लाईट उसकी बिल जमा नहीं होने से कट गई थी सो ढिबरी की मद्धम रोशनी में सभी बैठे बात कर रहे थे लेकिन कोई बात हरि के दिमाग में चुभ जाती है ।वह अपने भावी सम्बन्धों की परवाह न कर वर्तमान को टटोलकर मध्यस्थ का गिरेबां पकड़ लेता है ।
सच्चाई खुलने पर हरि का ध्यान अपनी करतूत पर जाता है
वह लड़की के पिता के पास आकर माफी माँगता है लड़की के पिता चाहकर भी उसे माफ़ नहीं कर पाते !
लड़की के बाप को उसकी दरिन्दगी पसन्द नहीं आती है ।
हरि सोचता है काश मैं नशा नहीं करता अपने होश न खोकर सामान्य ही रहता ।।

लड़की का पिता विचार करता है कि कहाँ दलदल में धँसते ,मेरी बेटी ताउम्र जुल्म का शिकार होती शायद कोई
अनहोनी हो और बाद में हम कुछ नहीं कर पाते !
चलो अच्छा हुआ सम्बन्ध अगर कर देता तो भविष्य में न जाने क्या क्या हो जाता मैं बेटी का बाप हूँ कैसे उसकी भावनाओं का दमन करता !!
नहीं ! नहीं !! ऐसा अनर्थ नहीं कर सकता ।हाँ बिल्कुल
नहीं कर सकता मैं बिल्कुल ऐसा नहीं कर सकता !!
सारे मेहमान चले गए ।
हरि आज भी दोराहे पर खड़ा अपने भाग्य को कोस रहा है अब मनः स्थिति और बदल गई है उसको काम से भी निकाल दिया है अब वही कबाड़ी की दुकान पे लोहा पीट रहा है ।

उसको पश्चाताप है काश समय रहते चेत जाता !! मद्यप बन यूँ जिन्दगी को बेकार नहीं करता ।जो चल रहा था सहज में
काश ! वही बरकरार रख पाता तो आज मेरा अपना भी
एक घर बसता ,दो जीवन संवरते !

-MaheshKumar Sharma
:. 21/12/2022
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