अकेलापन..
रात के 2:30 बज रहे थे ऐसा लग रहा मानो जैसे कमरे मे कोई और शख्स भी मौजूद है l मेरे साथ सिरहाने बैठा वो शख्स मुझे पूछ रहा है l
जिंदगी से, इतने ख़फ़ा क्यों हों?
पंखा - ये मुझे कई घंटो तक देखता रहता है बिना पलके झपकाए पता नहीं क्या ढूंढ रहा है मुझ में l
एक रोज इसने मुझ मे रस्सी बांधी और दूसरे छोर पर खुद को मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी...
जिंदगी से, इतने ख़फ़ा क्यों हों?
पंखा - ये मुझे कई घंटो तक देखता रहता है बिना पलके झपकाए पता नहीं क्या ढूंढ रहा है मुझ में l
एक रोज इसने मुझ मे रस्सी बांधी और दूसरे छोर पर खुद को मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी...