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दहेज - एक कुरीति
कितनी खुश थी आज सुमन। उसकी शादी जो थी। आँखों में अनगिनत सपने संजोए वो अपने हमसफर के आने की राह तक रही थी। कितनी सुहानी होगी उसकी आने वाली ज़िंदगी, ये सोचकर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी सुमन। जो सपने देखे थे उसने वो आज पूरे होने को थे। सोच रही थी वो कि एक ख़ुशहाल ज़िंदगी की शुरुआत होने वाले हैं। अपने माता पिता से दूर जाने का भी दुख था उसे। पर एक अजीब सी खुशी भी महसूस कर रही थी वो। उसकी खुद की एक नई ज़िंदगी जो शुरू होने को थी।
सारे घर में चहल-पहल का माहौल था। माँ बाबा आज कितने खुश थे। उनकी प्यारी बेटी का घर बसाने को था। बारात के स्वागत की तैयारी में सब लगे हुए थे। अपनी बेटी की खुशी की ख़ातिर उन्होंने अपनी हैसियत से ज़्यादा ही खर्चा किया था। पर उनको इस बात कोई मलाल ना था। आख़िर होता भी क्यूँ। बेटी की खुशी से ज़्यादा और क्या मायने रखता है किसी भी माता पिता के लिए। खाने-पीने का पूरा बंदोबस्त था। पंडाल की सजावट फूलों से की गई थी। फूलों की खुशबू से महक रहा था पूरा पंडाल।
आख़िर इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं। बारात द्वार पर थी। सारे बाराती पूरे जोश के साथ नाच रहे थे। सुमन ये सब अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी। उसकी नजरें तो अपने होने वाले पति रमेश को खोज रहीं थीं। रमेश पर जैसे ही उसकी नजर पड़ी, वो भी शायद उसे ही खोज रहा था। दोनों की नजरें मिलीं, और एक मीठी मुस्कान दोनों के चेहरे पर खिल सी गई। सुमन का चेहरा रमेश को देखकर मानो खिल सा गया। उसने हाथ हिलाकर अपने होने वाले पति का स्वागत किया। बारात में आए लोगों का स्वागत होने लगा। हंसी ठिठोली और खुशी का माहौल था। बारात को बाइज्जत पंडाल में लाया गया।
सुमन अब कमरे में बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी कि कोई आए उसे लेने और वो अपने हमसफ़र के सामने हो। यही सोचकर उसका मन खुशी से सराबोर था।
बहुत देर हो गई। कोई आया ही नहीं उसके पास। सुमन की बेसब्री का बांध टूटने को था। अब तक तो किसी ना किसी को उसे लेने आ जाना चाहिए था। इतनी देरी की आखिर क्या वज़ह होगी। अब सुमन का दिल घबराने लगा।
तभी उसे अपने पिता की आवाज़ आयी। वो माँ से बहुत धीमी आवाज़ में कुछ कह रहे थे। इतने पैसों का इंतज़ाम हम कैसे करेंगे, माँ पिताजी से कह रही थी। पिताजी उन्हें चुप रहने को कह रहे थे। सुमन को कुछ समझ ना आया कि आख़िर किस विषय पर बात चल रही है।
वो कमरे से बाहर आ गई। उसने देख कि उसकी माँ रो रही थी। उसके बार-बार पूछने पर माँ ने बताया कि रमेश के माता पिता दहेज में दस लाख रुपए माँग रहे थे। अब इतनी बड़ी रकम वो कहाँ से लाएँगे। सुमन को ये बात बहुत अटपटी लगी। आख़िर उन्हें पैसे देने ही क्यूँ हैं। वो एक पड़ी लिखी लड़की है। माता-पिता ने उसे उच्च शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। रमेश से किसी भी चीज़ में वो कम नहीं थी। फ़िर ये दहेज क्यूँ?
लाख मना करने पर भी वो पंडाल में बारातियों के बीच आ गई। सीधे वो रमेश के सामने गई और उससे प्रश्न किया, क्या वो बिना दहेज के उसके साथ शादी करने को तैयार है? रमेश मौन रहा। बस इतना ही कहा उसने कि अपने माता-पिता के विरुद्ध वो नहीं जा सकता। वो वही करेगा जो उसके माता-पिता कहेंगे।
सुमन से भी अब और बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई। उसने सीधे-सीधे रमेश को बोल दिया कि जिस व्यक्ति को सही गलत का ही कुछ पता नहीं, वो उसके साथ शादी नहीं कर सकती। उसने रमेश के माता-पिता को बारात वापिस ले जाने को बोल दिया। कुछ देर गहमागहमी के बाद बारात वापिस चली गई।
दहेज प्रथा हमारे समाज की बहुत बड़ी कुरीति है। कितनी ही लड़कियाँ इसकी बलि चढ़ गईं। दहेज प्रथा न केवल अवैध है बल्कि अनैतिक भी है। इसलिये दहेज प्रथा की बुराइयों के प्रति समाज की अंतरात्मा को पूरी तरह से जगाने की ज़रूरत है ताकि समाज में दहेज की मांग करने वालों की प्रतिष्ठा कम हो जाए।
© Poonam Suyal
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