कन्यादान (चतुर्थ भाग)
धीरे धीरे शादी का दिन नजदीक आने लगा और घर पर नातेदारों का आना शुरू हो गया। घर में रौनकें बढ़ गई। शांत पड़े घर में अब रिश्तेदारों के साथ आए बच्चों की आवाजें गूंज रही थी। बच्चे दिन भर शोर मचाते और उछल कूद करते। शादी के माहौल में उन्हें आजादी जो मिल गई थी, उसका भरपूर आनंद उठा रहे थे।
दिन गूजरता गया और तिलकोत्सव का दिन आ गया। सुबह से ही चहल पहल तेज हो गई थी। रामलालजी के घर पर, वर को उपहार में देने के लिए लाये गए सामान जुदा जुदा कर रखे जा रहे थे। उन्हें ले जाने की तैयारियां की जा रही थी।
मनीष बाबू के परिवार ने प्रोग्राम हाल में पहुँचकर मोर्चा संभाल लिया था। मेहमानों के आवभगत की जोड़ों से तैयारियां चल रही थी। व्यंजन पकवान बनाए जा रहे थे। शाम को नियत समय पर रामलालजी अपने रिश्तेदारों सहित मनीष बाबू के हाल पहुँचे तो मेहमानों का बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया गया। आनंद से लेकर भोजन तक के सारे संसाधन उपलब्ध थे। बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी ने उनका भरपूर आनंद उठाया। भेंट में उपहार इतने दिए गए थे कि लोग देखते रह गए। कार्यक्रम के अवशेष पर मनीष बाबू ने रामलालजी के परिवार के लिए खाद्य एवं उपहार भेंट दी। कार्यक्रम की भव्यता पर दोनों तरफ से आए मेहमान वाह वाह करते रह गए।
तिलकोत्सव के बाद शादी एवं विदाई की तैयारियां शुरू हो गई। हल्दी, मेंहदी, उबटन की सारी रश्में एक एक कर निभाई गई। शादी के लिए एक अस्थाई मंडप भी तैयार किया गया।
शादी के दिन सुबह से ही दौड़ धूप लग गई। रामलालजी जहाँ मेहमानों की आवभगत की तैयारी में तल्लीन थे वहीं महिलाएँ प्राची की तैयारी में लिप्त थी।
मांडवी : बुआ देखो, प्राची की मेंहदी कितनी खिल रही है। इसका दूल्हा इसे बेहद प्यार करेगा।
प्राची : (शर्माते हुए) बस भी कर मांडवी, बस मजे लिए जा रही हैं।
प्रिया : चलो मैं हल्दी स्नान करा दूं।
मनीष बाबू के घर भी बारात की तैयारियां जोरों से चल रही थी। बहन और जीजाजी सतीष का विशेष ध्यान दे रहे थे।
शाम के वक्त जब बारात आई तो वर देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। शेरवानी कूर्ते में घोड़े पर सवार दूल्हे के साथ गाड़ियों का काफिला और बैंड पार्टी का धून सबके मन मोह रहा था। वधु पक्ष ने आगे बढ़ कर वर पक्ष का स्वागत किया। महिलाओं ने वर की आरती उतारी। फिर द्वार पूजा की रश्म और तत्पश्चात वरमाला की रश्म का आयोजन किया गया। सिंहासन पर विराजमान सतीष और प्राची किसी साम्राज्य के राजकुमार - राजकुमारी प्रतीत हो रहे थे। दोनों की सुंदर जोड़ी सबका मन मुग्ध कर रही थी। जो भी देखता, देखते ही रह जाता था।
शादी के वक्त जब कन्यादान का कार्यक्रम होने लगा तो पल भर के लिए सतीष काफी भावुक हो गया। पहली मुलाकात की वो सारी बातें किसी चलचित्र की भांति मानस पटल पर भ्रमण करने लगी। वह पल पल उन बातों को याद कर प्राची को घूरे जा रहा था। प्राची भी उसकी आंखो में झांके जा रही थी।...
दिन गूजरता गया और तिलकोत्सव का दिन आ गया। सुबह से ही चहल पहल तेज हो गई थी। रामलालजी के घर पर, वर को उपहार में देने के लिए लाये गए सामान जुदा जुदा कर रखे जा रहे थे। उन्हें ले जाने की तैयारियां की जा रही थी।
मनीष बाबू के परिवार ने प्रोग्राम हाल में पहुँचकर मोर्चा संभाल लिया था। मेहमानों के आवभगत की जोड़ों से तैयारियां चल रही थी। व्यंजन पकवान बनाए जा रहे थे। शाम को नियत समय पर रामलालजी अपने रिश्तेदारों सहित मनीष बाबू के हाल पहुँचे तो मेहमानों का बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया गया। आनंद से लेकर भोजन तक के सारे संसाधन उपलब्ध थे। बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी ने उनका भरपूर आनंद उठाया। भेंट में उपहार इतने दिए गए थे कि लोग देखते रह गए। कार्यक्रम के अवशेष पर मनीष बाबू ने रामलालजी के परिवार के लिए खाद्य एवं उपहार भेंट दी। कार्यक्रम की भव्यता पर दोनों तरफ से आए मेहमान वाह वाह करते रह गए।
तिलकोत्सव के बाद शादी एवं विदाई की तैयारियां शुरू हो गई। हल्दी, मेंहदी, उबटन की सारी रश्में एक एक कर निभाई गई। शादी के लिए एक अस्थाई मंडप भी तैयार किया गया।
शादी के दिन सुबह से ही दौड़ धूप लग गई। रामलालजी जहाँ मेहमानों की आवभगत की तैयारी में तल्लीन थे वहीं महिलाएँ प्राची की तैयारी में लिप्त थी।
मांडवी : बुआ देखो, प्राची की मेंहदी कितनी खिल रही है। इसका दूल्हा इसे बेहद प्यार करेगा।
प्राची : (शर्माते हुए) बस भी कर मांडवी, बस मजे लिए जा रही हैं।
प्रिया : चलो मैं हल्दी स्नान करा दूं।
मनीष बाबू के घर भी बारात की तैयारियां जोरों से चल रही थी। बहन और जीजाजी सतीष का विशेष ध्यान दे रहे थे।
शाम के वक्त जब बारात आई तो वर देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। शेरवानी कूर्ते में घोड़े पर सवार दूल्हे के साथ गाड़ियों का काफिला और बैंड पार्टी का धून सबके मन मोह रहा था। वधु पक्ष ने आगे बढ़ कर वर पक्ष का स्वागत किया। महिलाओं ने वर की आरती उतारी। फिर द्वार पूजा की रश्म और तत्पश्चात वरमाला की रश्म का आयोजन किया गया। सिंहासन पर विराजमान सतीष और प्राची किसी साम्राज्य के राजकुमार - राजकुमारी प्रतीत हो रहे थे। दोनों की सुंदर जोड़ी सबका मन मुग्ध कर रही थी। जो भी देखता, देखते ही रह जाता था।
शादी के वक्त जब कन्यादान का कार्यक्रम होने लगा तो पल भर के लिए सतीष काफी भावुक हो गया। पहली मुलाकात की वो सारी बातें किसी चलचित्र की भांति मानस पटल पर भ्रमण करने लगी। वह पल पल उन बातों को याद कर प्राची को घूरे जा रहा था। प्राची भी उसकी आंखो में झांके जा रही थी।...