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बारिश की प्रथम बूंदें!☔🌧️☺️♥️
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ठंडी हवाओं की दस्तक। घनघोर मेघों का नाद। बादल घुमड़ घुमड़ आते हैं और कृष्णमय होकर करते हैं नृत्य वायुमंडल में मानो प्रेरित हो स्वयं कृष्ण से! अद्भुत नयनाभिराम दृश्य!
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टिप, टिप, टिप! गर्म तपती झुलसती ज़मीं पर वर्षा ऋतु की पहली बूंदें मानो हृदय की तप्त धरा पर प्रेयसी का प्रथम चुंबन हो। मिट्टी की सौंधी सौंधी उठती महक मानो स्वयं धरा चहकी हो।
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क्या पौधे, क्या पक्षी, क्या जीव जंतु—भूलकर सब अवसाद, पीड़ा और निराशाएं, सब चाहते हैं वर्षा की प्रथम बौछार में स्नान करना। देखो, वो धूल धूसरित वृक्षों के भीगे पत्ते कितने प्रफुल्लित प्रतीत होते हैं मानो ईद पर नए कपड़े मिले हों या शायद बसंत की हरियाली लौट आई हो! छतरियों और बरसातियों का दौर लौट आया हो।
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पानी के छप्पड़ों में टर्राते मेंढक और कूदते बालकों के टोले, रात्रि में गुंजन करते झिंगुर, बल्ब के इर्द-गिर्द फड़फड़ाते पतंगें, अरबी( घुईंया) के पत्तों और बेसन से बनते पकौड़े और टपरी पर अल्युमीनियम की बड़ी केतली में उबलती कड़क बाघ-बकरी चाय! सब गतिविधियां मानो इन्हीं बारिश की बूंदों की चिर प्रतीक्षा में थे।
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वो देखो, रसोईघर में अम्मां क्या कर रही है? अपने बूढ़े कंपकंपाते हाथों से गुझिया तल रही है। 'ओ, सजना, बरखा बहार आई.....'—एक पुराना गीत भी गुनगुना रही है। पिताजी, छत और छज्जों का मुआयना कर रहे हैं कि कहीं से पानी चो तो नहीं रहा। कभी कभी पूछ भी लेते हैं," पड़ोस के हलवाई से जलेबी ले आऊं?" वास्तव में दिल उनका भी बच्चा है जी।
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आप सब भी तो अपने आसपास यही सब होता देख रहे होंगे और आप सबके हृदय तरंगित हो रहे होंगे? अगर हां, तो आओ, मिलकर प्रकृति मां का हृदय से धन्यवाद करें। सच ही कहा गया है—जल बिन सब सून!
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— Vijay Kumar
© Truly Chambyal