...

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असमंजस
दीपा को ये जानना था वो कुछ काम करेगी या बस घर संभालेगी

दीपा की दादी की तबियत खराब रहती थी इसलिए दादी ने दीपा को आकर देखने की इच्छा व्यक्त की

दीपा कभी कभी ध्यान करती थी
जब उस दिन दीपा ध्यान करने बैठी
मन मे आवाज आयी तुम्हारी दादी को कुछ नहीं हुआ है
तो दादी मुझे क्यों वहां जाने को कहां

आवाज थोड़ी देर बंद हो गयी
तुम्हारी दादी मोह मे तुम्हें बुला रही है जो कोई समझ नहीं पाता दादी ने समझ लिया उन्हें लगता है तुम असाधारण हो तभी तुम्हारा सानिध्य चाहा

क्या ये बात सही है?
हाँ ये सही है पर तुम्हें खुद नहीं पता ये सब
तो क्या भगवन किसी से भी मोह गलत है


मोह किया नहीं जाता अपने आप हो जाता है जब ये बात समझ आ जाती तो मोह नहीं रहता
तो मुझे क्या करना चाहिए
भक्ति करती रहो अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करती रहो मोह हो ही जाता एक क्षण ऐसा आता पर बिना मोह मे रहे सभी की परवाह करना ग्रहस्थ जीवन और माँ की भूमिका


दीपा ने ध्यान मे खुद को बहुत विचार शून्य पाया

प्रभु मन मे एक दुविधा है
यही ना मोह किसी से नहीं रखना तो अपना कौन
जी एकदम सत्य मेरा यही सवाल था

अपने पराये सोचकर नहीं निभाओ बस अपनी जिम्मेदारी को पूरा करो
जब जो जरूरत हो उस अनुरूप खुद को ढाल लो

दीपा को जवाब मिल रहे थे सवाल पूछने की जिज्ञासा भी बढ़ रही थी

क्यों मुझे मेरे अपने समझते नहीं
कीमती चीज की कदर हर कोई नहीं कर सकता


अब दीपा को तसल्ली हुई और मन खुश हो गया
यानी ना कोई अपना ना पराया वो बस अपना किरदार निभा रही जहां जो जरूरत हो


दीपा दो दिन बाद दादी से मिलने गयी
दीपा को देखकर दादी बहुत खुश हुई

बिस्तर से उठकर बैठ गयी दीपा को गले लगाया

फिर दीपा को दादी की बहु ने चाय पिलाई
पर दादी अपनी पोती से ही ज्यादा बात करना चाहती थी
एक सुकून मिलता था उन्हें दीपा से बात करके ।







समाप्त
28/3/2024
1:55 दोपहर








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