पुरुषत्व
पता है?
इस दुनिया का विदारक दृश्य क्या है?
एक पुरूष का क्रंदन,
पुरूष अपने दर्द को, उस सीलन की माफिक,
दरारों में सहेजे रखता है हृदय में,
बाहरी रूप से कठोर दिखनेवाला पुरूष हृदय,
जिर्ण होता है, ऐसा कि बस धड़क रहा है वो क्योंकि धड़कना नियति है उसकी,
परंतु, किंचित, बांध टूटता है,
और बह निकलते हैं अश्रु, ये महज़ समुद्र नहीं होता, होता है तूफानी समुद्र,
यह नीर परम सत्य होता है, यह नीर गंगाजल सा पवित्र होता है, यह नीर शिव के तांडव सा होता है, जो सती के मृत्यु पश्चात महादेव ने किया था, यह नीर दंभ या उपालंभ रहित होता है,ज़्यादातर वो एकांत में रुदन करता है परंतु उन सबको अपने साथ ही पाता है जो इन आँसुओं में बह रहे होते हैं,
जब यह दृश्य देखोगे, इक सत्य अनुभूति में आएगा, अड़िग हिमालय से नर में ही पवित्र गंगा स्थित है, पुरूष बिन नारी, अरे! नारी क्या, दुनिया व्यर्थ है,
दिखाते नहीं ये अपने आँसू, तभी पूर्णतया समझे भी नहीं जाते।
©jigna_a
इस दुनिया का विदारक दृश्य क्या है?
एक पुरूष का क्रंदन,
पुरूष अपने दर्द को, उस सीलन की माफिक,
दरारों में सहेजे रखता है हृदय में,
बाहरी रूप से कठोर दिखनेवाला पुरूष हृदय,
जिर्ण होता है, ऐसा कि बस धड़क रहा है वो क्योंकि धड़कना नियति है उसकी,
परंतु, किंचित, बांध टूटता है,
और बह निकलते हैं अश्रु, ये महज़ समुद्र नहीं होता, होता है तूफानी समुद्र,
यह नीर परम सत्य होता है, यह नीर गंगाजल सा पवित्र होता है, यह नीर शिव के तांडव सा होता है, जो सती के मृत्यु पश्चात महादेव ने किया था, यह नीर दंभ या उपालंभ रहित होता है,ज़्यादातर वो एकांत में रुदन करता है परंतु उन सबको अपने साथ ही पाता है जो इन आँसुओं में बह रहे होते हैं,
जब यह दृश्य देखोगे, इक सत्य अनुभूति में आएगा, अड़िग हिमालय से नर में ही पवित्र गंगा स्थित है, पुरूष बिन नारी, अरे! नारी क्या, दुनिया व्यर्थ है,
दिखाते नहीं ये अपने आँसू, तभी पूर्णतया समझे भी नहीं जाते।
©jigna_a