...

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बुल और बुलबुल...
सुनो सुनाऊँ एक कहानी बुल और बुलबुल की प्यारी ..
कभी सुनी ना होगी तुमने प्रेम कथा अद्भुत न्यारी..
एक था बुल और एक थी बुलबुल दोनों जंगल के वासी...
बुल बुलबुल के प्यार में पागल बुलबुल बुल की थी प्यासी...
कैसे दोनों प्रेम के पंछी बिछड़ गये वो लाचारी..
सुनो सुनाऊँ एक कहानी बुल और बुलबुल की प्यारी..
बुल के पंख नहीं थे दाना,चुगने बुलबुल जाती थी..
सूरज ढलते साँझ भये घर, दाना लेकर आती थी..
पहले अपने पिया को देती फिर बुलबुल कुछ
ऐसे ही वो करें गुजारा बुल बुलबुल हँसते गाते है ..
एक दूजे के प्रेम में पागल प्रेम सुधा पी जाते हैं..
-और बुल रोज ऐसा ही करती.एक दिन बुल और बुलबुल की एक नई टोली उस जंगल में बुल बुलबुल के आस पास ही डेरा डालने आते हैं.. बहुत जल्द बुलबुल की गाढ़ी मित्रता हो गई.. बुलबुल रोज उनके साथ टोली बनाकर दाना चुगने जाने लगी..
अब बुलबुल को अपने दल के साथ जाने में बड़ा सुख मिलने लगा. कुछ दिन बाद बरसात लग गई..जाने क्यूं दो दिनों से घनघोर बारिश ने बुल और बुलबुल को अन्न का दाना नहीं मिलने दिया.. बुल अपाहिज तो था ही मग़र मारे भूख के बुल कमजोर होने लगा.. पर बुलबुल से कहे भी तो कैसे.. इतनी तेज बारिश आंधी तूफान, वो अपनी जीवनरक्षक प्राणप्रिया को कैसे संकट में डाल सकता था..? पर प्रेम तो प्रेम है ना.. बुलबुल समझ रही थी प्रियतम भूख से तड़प रहे हैं पर मुझसे कुछ कह नहीं पा रहे हैं... तभी उसने अपने नये दोस्तों को इशारे इशारे में कुछ कहा...और सारे दोस्त उड़कर उस वृक्ष की डाल पर आ गये फिर आगे क्या हुआ..

नये-नये बुल और बुलबुलों की टोली भी आज इस प्रेमी युगल की तड़प से व्याकुल हो उठी बुलबुल का इशारा समझ कर उनमें से एक चंचल बुल ने कहा -" अरि बुलबुल आज तो भगवान ने हमें भरपेट खाने को दे दिया. तुम्हें पता है इस बारिश ने ही हमारा भोजन देने में हमारी मदद की है, पास में ही एक अन्न से भरी बैलगाड़ी पलट गई थी गाड़ी तो किसान ले कर चला गया पर वहां बहुत सारा अन्न का ढेर छोड़ गया है.. शायद भगवान हमें भूखा ना देख पाया हो... चलो हम सब बहुत सारे भोजन की व्यवस्था कर लायें...
बुलबुल ने कहा- मैं आपके लिये अभी ताज़ा अन्न के दाने लाती हूँ आप मेरा यहीं इंतजार करना... !!
बुल ने कहा-नहीं नहीं मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा इतना भयंकर मौसम है बिजली कड़कड़ा रही है, तुम्हें याद है ना जब एक बार मैं भी तुम्हारे लिये ऐसे ही भोजन के लिये बरसात में गया था तो आकाश बिजली मुझे छूकर निकल गई और मेरे दोनों पंख जल गये..
मैं अपनी भूख के लिये तुम्हें किसी संकट में नहीं डाल सकता.. तुम्हें कहीं नहीं जाना है बस..
बुलबुल -फिर दोस्तों को इशारा किया..
तो सबने मिलकर बुल को समझाया-देखो बुल, ऐसा करोगे तो हम सब भूख से ही मर जायेंगे..फिर अगर मरना ही है तो लड़कर क्यूं ना मरें.. हमें जाने दो हम सबके लिये ढेर सारा भोजन लेकर अभी लौटते हैं...
बुल को कुछ समझ में आया फिर बोला मैं आप सबके भरोसे बुल को जाने की मनाही नहीं करूँगा पर आप याद रखना.. मेरी बुलबुल को कुछ भी नहीं होना चाहिए..
सबने एक स्वर में कहा-आप फ़िक्र ना करें.. हम सब जल्दी दाना लेकर आते हैं..
इतना कहकर और बुलबुल को लिये बुलोँ की टोली उसे आकाश में बहुत दूर उड़ा ले गयी,सब मिलकर भोजन की तलाश में उड़ते हुये पैनी निगाहों से धरती की तरफ देखते जा रहे हैं,मूसलाधार बारिस से मानो पंख टूटे जाते हों, मगर भूख कब कहाँ कुछ देखती है, पेट की आग बुझाने कौन हद से नहीं गुजर जाता..
बुलोँ की टोली भी अपनी सखी के लिये पूरी तत्परता से समर्पित थी..बुलबुल की सुरक्षा का वचन जो दिया था उन्होंने..इसलिये बुलबुल को अपनी टोली के बीच लेकर उड़ रहे थे, मगर बुलबुल को अपने पिया की भूख की चिंता होने लगी दिन भर बुलबुल को आज एक दाना नहीं मिला सोचती आज मेरे पिया भूख से तड़प रहे होंगे... बुलबुल की आँखों में आंसू आ गये.. बुलबुल अपने प्रियतम को भूख से तड़पता नहीं देख सकती थी..
होनहार कौन रोक सका है.. उड़ते उड़ते अचानक बुलबुल ने देखा नीचे जमीन पर हीरे मोती से चमकते अन्न के दाने बिखरे पड़े हैं, बुलबुल को जैसे दुनिया की सारी ख़ुशी मिल गई हो.. खुशी के मारे बुलबुल ने दानों की तरफ खुद को मोड़ा लेकिन टोली ने बुलबुल को वहां जाने से रोका और कहा, -"रुको बुलबुल वहां मत जाओ,,, वहाँ खतरा है.. पर बुलबुल कहाँ मानने वाली थी अपने प्रियतम की भूख मिटाने से ज्यादा उसे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था.. बुलबुल...