...

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बयार परिवर्तन की
बेटी उठो ना ,आज स्कूल नहीं जाना क्या ,तबीअत तो ठीक है ना ?
हाँ हाँ ठीक ही है ,
तो फिर अभी तक जागरण क्यों नहीं हुआ ?
पापा ! आपने मोबाइल पर मैसेज नहीं पढ़ा कि आज 27 जनवरी का कलेक्टर महोदय ने अवकाश घोषित किया है ,
इसलिए आज थोड़ी देर और सोने का मन है ।
अच्छा ,कोई बात नहीं पर आवश्यक कामों का रूटीन तो डिस्टर्ब होता ही है न, पढ़ाई ठीक से नहीं होती ,कक्षा में स्थान गिर जाता है ,दूसरे कमजोर बच्चे आगे बढ़ जाते हैं ,
भाई ! कम्पीटीशन का युग है एक एक मिनट उपयोगी है ,
मनीष ने नन्हीं बिटिया के आगे नहीं समझने वाली फिलासफी रखी इसलिए उठ जाना ठीक है ?
जी ! पापा
मनीष अपनी बिटिया रेखा से यह कहकर बाजार चले गए ।
थोड़ी देर बाद बिटिया उठी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर उसने
अपना होमवर्क निपटाया । भोजनादि के बाद पड़ोस की नन्हीं सहेलियों को बुलाकर मकान के पास के खाली प्लाट में खेलने लग गई ।

खेलना क्या रेत के घरोंदे बनाना ,रेत से सीपी ढूँढना ,थोड़ी उधम मटरगश्ती उछलकूद में दोपहर ढल गई ,शाम हुई ,
मनीष बाजार से लौटे उन्होंने कहा -बिटिया अब बस भी करो ,शाम होने को है थोड़ी बहुत पढ़ाई भी करना !
जी ,पापा .सप्ताह के सात दिनों में यह एक ही दिन तो मिलता है हमें खेलने को थोड़ा और खेलने दो ना !बहुत मजा आ रहा है ..
मनीष ने कहा वो तो ठीक है पर याद है अभी कल की ही तो बात है तुम्हें बुखार भी आया था ज्य़ादा खेलने से थकान होगी और कहीं बुखार रिपीट न हो जाए कहीं याद रखना मम्मी कहाँ है
अन्दर ही है शायद किचन में होंगी ।
अच्छा ! ठीक है ,
मनीष सोचने लगे कितनी अपेक्षा करते हैं हम बच्चों से ,
अपने सपनों को उनमें फलते देखना चाहते हैं ,एक तरह से
अपनी अपेक्षा लाद ही तो रहे हैं उन पर ,
उनका खेल ,उनकी दोस्ती ,उनकी पढ़ाई,खाने पीने पर आचार विचार अभिव्यक्ति सभी कुछ तो हमारे अनुसार ढाल रहे हैं हम ,
बच्चों को खेलने का मन हो तो मोबाइल थमा देते हैं हम ,
ये अच्छा है ये बुरा है ,ये खाओं,ये पहनों ,यहाँ उठो ,वहाँ बैठो , अरे ! पवन का लड़का तो इतना समय देता है पढ़ाई में ,एक मिनट जाया नहीं करता और तुम आदिआदि !हमें ऐसी टिप्पणियों,तुलना से बचना चाहिए ।

सच भी है हमें उनके मौलिकपन को उजागर करने का अवसर देना चाहिए ,नियंत्रण रखें मगर लचीलापन भी
अन्तर हाथ सहार दे कि तरह व्यक्तित्व विकास का भी पूर्ण अवसर दें ।

रेखा अरे ! पापा चलें मैं आ गई हूँ ,क्या सोच रहे हैं आप अभी यही दरवाजे पर ही खड़े खड़े ?
अरे नहीं बिटिया ढूँढ़ रहा हूँ ख़ुद में परिवर्तन के निशां ,
वसन्त आया है तो पतझड़ को जाना ही है महसूस रहा हूँ
नवबयार परिवर्तन की ख़ुद में ।
बिटिया बस उनका मुँह देख रही थी ,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ।
वह बोली ,अरे ! चलिए भी ,आरती का समय हो रहा है यह कहकर पापा की ऊँगली पकड़ वह अन्दर आ गई ।

© MaheshKumar Sharma
29/1/2023
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