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प्रकृति द्वारा लेखिका का स्वागत
सावन के महीने की बात है की एक दिन लेख का के मन में अपनी जन्मभूमि देखने की लालसा उमड़ी
वह अपने गांव जाने को हर दिन तत्पर रहती परंतु जा नहीं पाती
एक दिन वह अपने छोटे भाई के साथ अपनी जन्मभूमि जाती हैं
मन में उमंग उत्साह सजाए ऐसे मन में प्रफुल्लित होती हैं
जैसे कोई बिछड़ी हुई बेटी अपनी मां से मिलने जाती है
आंखों में प्रेम की आशा लिए अपने गांव की तरफ चल पड़ती हैं
धीरे-धीरे अपनी जन्म भूमि के वातावरण को महसूस करती हुई आगे बढ़ती हैं
लेखिका का सबसे पहले स्वागत आम के वृक्ष करते हैं
पेड़ों की डालियां धीरे-धीरे लेखिका के ऊपर हवा करती हैं जैसे एक मां थकी हुई अपनी बेटी के ऊपर हवा कर रही है
खेतों में हरियाली लेखिका के आने पर जैसे नाच रही है
हवा बार-बार आकर लेखिका के बालों को सै सहलाकर तो कहीं छेड़ कर भाग जाती है
उसके बाद बादल भी स्वागत करते हैं
मीठे मीठे स्वरों में गीत सुनाते आकाश में ऐसा लग रहा था मानो चारों तरफ प्रकृति प्रेमी है वो भी स्वागत कर रहे हैं
जब लेखिका अपनी जन्म भूमि में आ जाती है
तब वर्षा रूपी नायिका भी लेखिका का स्वागत बड़े जोरों शोरों से करती है
इधर किसान भी वर्षा की आस लगाए बैठे थे
जैसे ही वर्षा रूपी नायिका धरती पर आती है
सब किसान प्रसन्न हो जाते हैं
सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है
यह सब देख कर ऐसा लगता है जैसे कोई मां ने अपनी बेटी के आने की खुशी में स्वागत की तैयारी की हो
फिर सूरज अपनी किरणें फैलाता हुआ निकलता है
यहीं पर इस कहानी का अंत होता है !!
© Mamta