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यादें कुछ ऐसी भी
मैंने कहा भी था तुमसे तुम रुक जाओ, एक बार फिर मुड़ के देख लो पर तुम नहीं रुके ए दोस्त, तुम्हे जाते हुए 6 साल हो चुके। पर एक बार भी तुमने मुड़के न देखा।

यहाँ तक की मैं तुम्हारी गलियों से गुज़रती थी, पर तुम वहाँ दिखाई तक नही देते। उस वक़्त पता है कितना अफसोस होता था, जब मैं तुम्हें वहाँ मौजूद न देखती थी। मुझे अब तक वो हर दिन याद आता है जो हमने साथ बिताया, हर दुख- सुख में हम एक दूसरे के साथ होते। मुझे वो हर दिन, हर पल, हर लम्हा याद है।

और जब मुझे ये सब याद आने लगता और मेरी आँखों में आँसू आ जाते। वो यादों के आँसू से आँखें भर उठती, वो दीवानगी मुझे याद आती, वो तन्हाई मुझे सताती, जब मैं तुम्हारी गलियों में आती।

अब ऐसा लगता है जैसे चाहकर भी कुछ नहीं हो सकता....

© Glory of Epistle