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चिट्ठी वाली बात
#चिट्ठी
लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी।
उसे डर था कि कही वह उस चिट्ठी के बारे में
घर वालों को ना बता दे।अगर ऐसा हुआ तो यह तो बवाल ही हो जाएगा। नजाने उसके घर वाले उसका क्या हाल करेंगे।
अरे अगर वह बता देती है तो सबको हमारे और राहुल के रिश्तों के बारे में मालूम चल जाएगा जो कि अभी ठीक नहीं है।
अभी ये बात ना ही मालूम चले तो अच्छा है क्योंकि अभी मुझे बहुत कुछ करना है।
यार इन चकरो में मुझे नहीं पड़ना है।
जब सही वक्त आएगा तो मैं खुद ही सबको अपने प्यार की बारे में बता दूंगी।
बस सुप्रिया मेरी बातों को समझे यही मैं प्राथना करती हूं।
सुप्रिया तुम आ गई, तो बताओ तुम कैसी हो और तुम क्या बताना चाहती थी।
निकिता मुझे तुम्हारी चिट्ठी के बारे में यार पता चला मुझसे तो रहा ही नहीं गया । मैं हैरान हो गई कि तुम ये सब कैसे कर सकती है ।वह भी बिना हमको बताए इतना कुछ हो गया और मुझे अब मालूम चला ।
तुम दोस्त मुझे नहीं समझती हो क्या।
नहीं यार जरा सा बात यह है कि राहुल मुझसे बहुत प्यार करता है। वह मेरा पीछा दो सालो से कर रहा है।
शुरू शुरू में तो मैंने भी इंकार कर दिया था।
उसकी हालत यार मुझसे देखी नहीं गई और मैं भी उससे प्यार कर बैठी । पर मेरे घर वालों को ये बात अभी मत बताना ।
जब ठीक समय आयेगी तो मैं खुद ही बता दुगी।
सुप्रिया, ठीक है यार मैं तुम्हारे साथ ऐसा क्यों करूंगी ।
तुम जैसा चाहती वैसा ही होगा । तुम टेंशन ना लो ।अगर मेरी मदद की जरूरत हो तो कहना
मैं तुम्हारा साथ जरूर दूंगी।
निकिता ,धन्यवाद् यार तुम्हारे जैसा दोस्त सबको ईश्वर दे।