क्यों, बेबुनियाद सवाल क्यों..
एक प्रश्न किसी ने उठाया कि एक लड़की अपने पिता की आर्थिक स्थिति से शिकवा नहीं करती, परंतु अपने पति से उसे सदा शिकायते रहती है l हालाँकि ये वक्तव्य एक कटाक्ष के रूप में था और कई महानुभावों के दृष्टिकोण में नारी केवल धन संपदा के लिए ही पुरुष के साथ होती है और जब चाहे अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए पुरुष को एक साधन की तरह इस्तेमाल करती है l बेहद अफसोस हुआ, उन सभी पुरुषों की इस मानसिकता को देख कर l
अब हमारा भी कुछ शब्द कहना तो बनता है ना........
पिता किसी भी स्थिति में हो, बेटी की जरूरतों और ख्वाहिशों को अपनी सामर्थ्य से बाहर जा कर भी पूरा करने का प्रयास करता है l और आजीवन इस बात का अहसास बेटी को ना हो, इसका भी पूरा प्रयत्न करता है l उनके इस त्याग और समर्पित प्यार को बेटी जन्म से देखती आती है l इसीलिए उसका विश्वास अपने पिता के प्रति कभी कम नहीं होता l
अब रही पति की बात, तो ज्यादतर पति के द्वारा पत्नी के लिए किये गए किसी भी प्रयास को आमतौर पर अहसान की सूरत दी जाती है l पति के घर में पत्नी अधिकतर एक बंधुआ मजदूर से ज्यादा नहीं होती जिसे विशेष दिन पर कोई तौहफा देना भी एक औपचारिकता में आता है l इसीलिए लड़की पति के घर में अपने अस्तित्व को ही ढूंढती रहती है l रही बात सामंजस्य ना बिठा पाने की, तो आप सभी की पत्नियाँ आज भी आपके साथ है ना l क्या ये काफी नहीं है एक ठोस उत्तर के रूप में , और यही बात काफी है, समझने के लिए l
जब आप नारी के बारे में बात करते है, तो सबसे पहली नारी आपकी माता होती है, फिर बहन, पत्नी और बेटी l क्या आप यही वक्तव्य अपनी माता के लिए दे सकते है l हम दावे से कह सकते है कि कोई नहीं देगा l तो ये मानसिकता पत्नी के लिए ही क्यों या किसी भी नारी के लिए क्यों ??
सविनय अनुरोध है आप सभी से, कृपया भाषा और शब्दों की गरिमा बनाये रखे l दूसरों की नहीं, परंतु आप सभी अपने शब्दों एवम विचारों के सुलझे होने की जिम्मेदारी तो उठा ही सकते है ना l
Social media पर सार्वजनिक रूप से दिए गए वक्तव्य लोगो की मानसिकता बनाने और बिगाड़ने का काम करते है l
कृपया इसे गंभीरता से ले 🙏🏻🙏🏻
© * नैna *
अब हमारा भी कुछ शब्द कहना तो बनता है ना........
पिता किसी भी स्थिति में हो, बेटी की जरूरतों और ख्वाहिशों को अपनी सामर्थ्य से बाहर जा कर भी पूरा करने का प्रयास करता है l और आजीवन इस बात का अहसास बेटी को ना हो, इसका भी पूरा प्रयत्न करता है l उनके इस त्याग और समर्पित प्यार को बेटी जन्म से देखती आती है l इसीलिए उसका विश्वास अपने पिता के प्रति कभी कम नहीं होता l
अब रही पति की बात, तो ज्यादतर पति के द्वारा पत्नी के लिए किये गए किसी भी प्रयास को आमतौर पर अहसान की सूरत दी जाती है l पति के घर में पत्नी अधिकतर एक बंधुआ मजदूर से ज्यादा नहीं होती जिसे विशेष दिन पर कोई तौहफा देना भी एक औपचारिकता में आता है l इसीलिए लड़की पति के घर में अपने अस्तित्व को ही ढूंढती रहती है l रही बात सामंजस्य ना बिठा पाने की, तो आप सभी की पत्नियाँ आज भी आपके साथ है ना l क्या ये काफी नहीं है एक ठोस उत्तर के रूप में , और यही बात काफी है, समझने के लिए l
जब आप नारी के बारे में बात करते है, तो सबसे पहली नारी आपकी माता होती है, फिर बहन, पत्नी और बेटी l क्या आप यही वक्तव्य अपनी माता के लिए दे सकते है l हम दावे से कह सकते है कि कोई नहीं देगा l तो ये मानसिकता पत्नी के लिए ही क्यों या किसी भी नारी के लिए क्यों ??
सविनय अनुरोध है आप सभी से, कृपया भाषा और शब्दों की गरिमा बनाये रखे l दूसरों की नहीं, परंतु आप सभी अपने शब्दों एवम विचारों के सुलझे होने की जिम्मेदारी तो उठा ही सकते है ना l
Social media पर सार्वजनिक रूप से दिए गए वक्तव्य लोगो की मानसिकता बनाने और बिगाड़ने का काम करते है l
कृपया इसे गंभीरता से ले 🙏🏻🙏🏻
© * नैna *