...

6 views

पिता
बात उन दिनों की है जब मैं 12वीं में पढ़ती थी। हम लोग सिकंदराबाद में रहते थे। पापा फौज़ से रिटायर हो चुके थे। हम लोग एक किराए के मकान में रहते थे। एक बार पापा किसी कम से गांव गए हुए थे। इसी बीच कुछ रिश्तेदार घर पर आने वाले थे। घर में गैस की टंकी खत्म हो चुकी थी। मम्मी उनकी एक सहेली से बात कर रही थी कि रिश्तेदार लोग तो आ रहे हैं मुझे बहुत मुश्किल हो जाएगी खाना बनाने में, घर पर गैस की टंकी भी खत्म हो चुकी है। उनकी सहेली ने उन्हें कहा कि मेरे पास स्टोव रखा है। आप पिंकी को भेज कर मंगवा लीजिए। मैं भी खुशी खुशी तैयार हो गई। लेकिन मम्मी ने मुझे मना किया था। फिर भी मैं आंटी के कहने पर उनके घर स्टोव लाने चली गई। आंटी भी किराए से ही रहती थी। जब मैं स्टोव लेकर उनके घर से निकली, उन्हीं के घर मालकिन का एक कुत्ते ने मुझे पैर की पिंडली में अपने दांत गड़ा दिए। मैं रोने लगी। जब घर पहुंची, तो मम्मी बहुत गुस्से में थी। मुझसे कहने लगी, मना करने पर भी क्यों गई? अब गई है तो भुगत। मैं कुछ नहीं जानती। उन आंटी ने ही मुझे डॉक्टर के पास ले जाकर टिटनेस का इंजेक्शन दिलवाया। बात आई गई और हो गई। जब पापा गांव से लौटे, तो मम्मी ने सारी बात नहीं बताई।
पापा ने मुझे बुलाया और कहा-बेटा तुम्हें इंजेक्शन लेना पड़ेगा। कुत्ते का काटना बहुत खराब होता है। इसका असर बहुत लंबे समय तक रहता है। वे मुझे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने कहा- 10 दिन से ज्यादा हो गए हैं, इसलिए 14 इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं है। हां लेकिन सात इंजेक्शन तो लगवाने ही पड़ेंगे। मैंने फिर वह साथ इंजेक्शन लगवाएं। हां, आज सोचती हूं, ये जीवन तो पापा का ही दिया हुआ है। पिता तो हमेशा अपने बच्चों को कुछ देता ही है। हां, कभी-कभी माता-पिता अपने बच्चों से आशा जरूर करते हैं। बच्चों को भी चाहिए कि वो अपने माता-पिता की आशा को जरूर पूरा करें।