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इत्तेफ़ाक...✍️ chapter–0
सुबह के 5:00 बज रहे थे। शेखर प्रतिदिन की तरह सुबह उठकर व्यायाम करने के बाद बालकनी में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था।
शेखर को प्रकृति से बहुत लगाव था। इसलिए उसने अपनी बालकनी को हरा भरा रखा था वह उसकी बालकनी में हर तरह के पेड़ पौधे फूल लगे हुए थे। और उन फूलों की सुगंध आसपास के वातावरण को महका रही थी। तभी नीचे से कबाड़ी वाले की आवाज आती है शेखर जब उसकी तरफ देखता है तो उसकी आंखें एक अनचाही चीज पर आकर के अटक जाती है। एक किताब जिसकी कवर पर बड़े अक्षरों से लिखा हुआ था – "इत्तेफ़ाक"।
किताब की कवर ने शेखर को अपनी ओर इतना आकर्षित कर लिया था कि वह उसको पाने के इरादे से दौड़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरा और कबाड़ी वाले से पूछा,

यह कैसी किताब है और तुम्हें कहां मिली?

साहब, मैं तो अनपढ़ आदमी भला इस किताब के बारे में क्या जानूं पर हां मुझे यह किताब पास के ही पार्क से एक बेंच पर पड़ी हुई मिली, कबाड़ी वाले ने कहा।

शेखर ने जेब से हाथ निकालते हुए कहा यह लो कुछ रुपए और यह किताब मुझे दे दो।

कबाड़ी वाला वह किताब शेखर को देकर के वहां से चला गया।
और शेखर उस किताब को लेकर के वापस अपनी जगह उसी बालकनी पर बैठ गया।
शेखर ने उस किताब को झाड़ कर उसकी धूल साफ की। और उसे पढ़ने के इरादे से उसने पहला पेज पलटा।

किताब के पहले पेज पर ही लिखा हुआ था कि " यह एक वास्तविक घटना पर लिखी हुई किताब है।"

फिर शेखर आगे पढ़ता है जहां से कहानी शुरू होती है........


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© Kaviraaj A.K..