...

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मजबूरी part 2
गजरा सोचने लगी भूख तो मुझे भी लगी है,
गजरा को मां की बहुत याद आ रही थी,
गजरा की आंखें भर आयी थी,
किंतु गजरा ने भाई के सामने अपने आंसुओं को बाहर नहीं आने दिया,
घर में अनाज तो था लेकिन गजरा मजबूर थी उसे भोजन बनाना नहीं आता था,
गजरा सोच रही थी कि भाई के लिए भोजन की व्यवस्था कहां से करूं,
गजरा सोच ही रही थी कि तभी उसकी काकी आ गयी,
काकी गजरा की पड़ोसन थी,
काकी ने आवाज लगाई गजरा चल मेरे घर भोजन कर ले,
और अपने भाई को भी ले चल ,
गजरा को थोड़ा सहारा मिला तो वह बहुत खुश हो गयी,
भाई को लेकर गजरा काकी के घर गई और भाई-बहन दोनों ने भोजन किया,
गजरा भोजन करके अपने घर जाने लगी तभी काकी बोली कि कहां जा रही है पहले थाली साफ कर दे,
गजरा बोली ठीक है मैं साफ कर देती हूं,
तभी काकी बोली रसोई भी साफ करके तभी अपने घर जाना।
काकी बोली कोई किसी को मुफ्त की रोटी नहीं देता है,
गजरा रोने लगी लेकिन कर भी क्या सकती थी,
माता- पिता का साया तो उठ गया था उसकी परिस्थिति खराब हो चुकी थी,
अब सहना और सुनना गजरा की मजबूरी हो गई
थी,
दूसरे दिन काकी बोली तेरे घर में अनाज तो है ही, तू मेरे घर लाकर रख दे क्योंकि अब मेरे सिवा तुझे कोई रोटी देने वाला नहीं है।
गजरा सोचने लगी चलो कोई बात नहीं है, हमें सहारा मिला है जैसा काकी कहती हैं वैसा ही करूंगी,
यह सब देखकर गांव के एक आदमी ने गजरा के मामा के घर गजरा का हाल पहुंचाया,
गजरा के मामा जी आए गजरा और गगन को लेकर अपने घर चले गए,
जैसे ही मामा जी घर पहुंचे तभी मामी बोली आपने इस घर को अनाथ आश्रम बना रखा है,
मामा जी ने कहा ये बच्चे भी इसी घर में रहेंगे,
तभी गजरा की नानी आ गयी,
और बच्चों को गले लगाकर बहुत रोने लगी,
नानी को दिन-रात बच्चों की चिंता सताने लगी,
इस प्रकार नानी का खाना पानी सब कुछ छूट गया,
नानी पहले से ही बीमार रहती थी और भी बीमार हो गयी,
देखते ही देखते नानी जी इस दुनिया से चली गयी।