...

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ग़ज़ल
बनाएँगे ज़मीं से आसमाँ तक गुलसिताँ अपना
सितारों सा नज़र आएगा फिर हिन्दोस्ताँ अपना

न करना भूलकर भी कोशिशें हमको मिटाने की
मिटा लोगे वगरना ख़ुद तुम्हीं नामो-निशाँ अपना

हमें बर्बाद करना इस क़दर आसान मत समझो
छुपा है ज़र्रे-ज़र्रे में वतन के पासबाँ अपना

निगाहें मुन्तज़िर हो कर उठी हसरत-ज़दा दिल से
करिश्मा आज दिखला दे जहाँ को आसमाँ अपना

मरेंगे हिन्द की ख़ातिर, जिएँगे हिन्द की ख़ातिर
हज़ारों मर्तबा हम दे चुके हैं इम्तिहाँ अपना

न समझो झुक गए हम ताक़ते-बातिल से घबराकर
उठेगा पर्बतों की शक्ल में फिर कारवाँ अपना

शहादत की कहानी किस क़दर ग़मगीन है "आलम"
खिलाकर फूल फिर वापस न आया बाग़बाँ अपना





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