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प्रार्थना
एक बूढ़ा किसान अपने चार बेटों के साथ रहता था। वह बूढ़ा होने के कारण खेती छोड़ चुका था। घर बेटों की कमाई से चलता था। उसके तीन बेटे घर खर्च में अपना हिस्सा दिया करते थे। चौथा बेटा कुछ नहीं करता था केवल बैठ कर खाता था। पिता भाइयों ने बहुत समझाया पर वह किसी की एक न सुनता। इसलिए सभी ने आपसी सहमति से उसे घर से निकालने का फैसला लिया। घर से निकाले जाने के बाद वह चलते-चलते एक मंदिर के पास पहुंचा यहां भंडारा चल रहा था चलते चलते हैं वह थक चुका था और उसे भूख भी लगी थी उसने सोचा क्यों नहीं आ रुक कर विश्राम और भोजन कर लिया जाय। भोजन कर ही रहा था कि मन में विचार आया कि यदि यही रहने की व्यवस्था हो जाए तो अच्छा हो। मन में आए विचार को उसने अपने बगल में बैठे व्यक्ति के सामने प्रकट किया तो उसने एक धोती कुर्ता पहने व्यक्ति की तरफ इशारा किया और कहा जाकर उनसे कहो वे यहां के पूजारी हैं और यहीं रहते हैं। भोजन करके किसान का बेटा सीधे पुजारी जी के पास गया और बोला महंत जी क्या मुझे यहां रहने की आज्ञा मिलेगी पुजारी जी के पूछने पर उसने सारी बात बता दी। पुजारी जी ने कहा ठीक है रहो पर मंदिर के नियमानुसार रहना होगा। उसने कहा आप जो कहेंगे सब करूंगा। वह आराम से वहां रहने लगा।
1 दिन भोग में केवल फल देखकर बोला आज केवल कल ही तो पुजारी जी बोले आज एकादशी है उपवास करना पड़ेगा। वह बोला मैं उपवास नहीं कर सकता। पुजारी जी बोले ठीक है यदि तुम को भोजन पकाना आता है तो भंडार से सामग्री ले लो और मंदिर से दूर जाकर पकाना पर भगवान को भोग लगाना। वह सामग्री लेकर दूर चला गया और भोजन पका लिया जैसे ही खाने को पहला निवाला उठाया उसे याद आ गया कि महंत जी ने भगवान को भोग लगाने के लिए कहा था वह बुलाया लगा, प्रभु राम आइए, मेरे राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए।
उसकी सच्चे मन से की गई भक्ति भगवान को स्वीकार करनी पड़ी और आना पड़ा।

© kalyani