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विज्ञान का अनुशीलन ही ईश्वर की सच्ची पूजन हैं।
किसी भी सीमित यानी भृम फलित नहीं सही पर शाश्वतता सत्यापित विज्ञान का अनुशीलन, अनुसंधान और उनके फलस्वरूप स्वीकृति का अंजाम ही उस सर्वसमर्थ यानी ईश्वर की सच्ची पूजन हैं अंततः ईश्वर भी तो खुद को नियति के अधीन कहते हैं इसका सीधा मतलब हैं कि वें खुद भौतिक से लेकर के हर एक दायरें यानी आयामों पर प्रकाश डालनें को कहते हैं और विज्ञान तो प्रत्यक्ष हों या अप्रत्यक्ष हमसें संबंधित भौतिक जगत से लेकर हर आयामों के नियमों के ज्ञान पर ही प्रकाश डालनें का काम करता हैं, भला विज्ञान सच्चे ईश्वर की तरह किसी को भी चमत्कार कह कर स्वीकार नहीं कर लेता हैं, जो चमत्कार को ही नमस्कार करकें उसके पीछे के विज्ञान को अहमियत नहीं देते या नहीं दें रहें वें ईश्वर का ही अपमान करने की ओर जा रहें हैं, अरें क्योंकि जिस नियति की अधीनता को ईश्वर भी मान रहें हैं, वें उसी को नहीं मान रहें बजायें इसके सभी को इससे विपरीत की अंजामित्ता को आकार देने चाहियें यानी वैज्ञानिक ही भगवान हैं उसे पूज लेना चाहियें अर्थात् वैज्ञानिकों की बातों को हलकें में नहीं लेना चाहियें क्योंकि वही इश्वर की मध्यस्थता करेंगा, नियति अर्थात् प्रकृति के नियमों को पहचान करके उन्हें स्वीकार कर सकेगा जिससें नियति के विरुद्ध न जानें से ईश्वर के समान हमारी जरूरतों अर्थात् समस्याओं का समाधान करेंगा और क्योंकि कर्म किसी के भी परिचय की सर्वाधिक सटीक कसौटियों में में से एक हैं अतएव नियति की अधीनता को स्वीकार करने से कर्म यानी परिचय की सटीकता के असली आधार पर वैज्ञानिक अर्थात् विज्ञान अनुशीलक, अनुसंधान कर्ता और उसकी समझ रखनें वाला ही ईश्वर हैं क्योंकि वह हर बार हमारी समस्याओं के समाधान करने वाले के रूप में समस्याओं का समाधान करके खरा उतरता हैं, वो खुद चमत्कार को नमस्कार करने का ढोंग नहीं करता हैं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यानी खुद चेष्ठा पूर्वक इस असलियत को स्पष्ट करकें या समाधान करने वाले के रूप में खरा उतर करकें।
© Rudra S. Sharma