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भाग-2 मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मॉंग


यश को संजना से फेसबुक पर बातें करना अच्छा लगने लगा था। संजना बेहद अच्छे स्वभाव की लड़की थी, औरों से अलग, उसमें ईगो बिल्कुल भी नहीं था और उसका सैंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल था। जैसे जैसे वक्त बीता दोनों एक दूसरे से और भी फ्रैंक होते गए। दोनों की दोस्ती ऐसी थी जिसमें वो एक दूसरे से सब कुछ शेयर कर लेते, एक दूसरे को जो जी में आया कह देते।

लेकिन ये बातें सिर्फ फेसबुक तक ही सीमित थी। वो दोनों क्लास में एक दूसरे से बिल्कुल भी बात नहीं करते। छोटे शहरों में लड़के-लड़कियों के आपस में बात करने का एक ही मतलब निकाला जाता था, इसी कारण यश ने चाह कर भी कोशिश नहीं की।

वक्त बीता और वे दोनों, फ्रेंड्स से बैस्ट-फ्रेंड्स बन गये। बातें अभी भी फेसबुक पर ही होती थीं, पर अब लेक्चर के बीच में इशारों-इशारों में ही दोनों एक दूसरे से काफी़ कुछ कह जाते , और खूब मुस्कुराते थे। दोनों को एक दूसरे की आदत सी पड़ चुकी थी। जिस दिन दोनों में से कोई एक ऑनलाइन नहीं होता तो दूसरे का कहीं मन ही नहीं लगता।

दोनों कोशिश करते कि स्कूल में वो एक दूसरे से दूर ही रहें, पर ये दोस्ती भी छिपाए नहीं छिपती, क्लास के अन्य स्टूडेंट्स में भी अब हल्की कानाफूसी होने लगी थी, यश के दोस्तों ने उससे पूछना शुरू कर दिया कि आखिर दोनों के बीच में मामला क्या है, यश ने उन्हें बहुत समझाया कि वो‌ जैसा सोच रहे हैं,ऐसा कुछ नहीं है, पर दोस्त कहां मानने वाले थे...

यश के दोस्तों ने अब उसे संजना के नाम से चिढ़ाना शुरू कर दिया। यश के समझाने का उन पर कोई असर नहीं होता। धीरे धीरे यश ने भी उन्हें समझाना छोड़ दिया, क्योंकि उसके मन में ऐसा कुछ नहीं था। उसने संजना को भी इस बारे में बताया तो उसने यश को इन बातों पर ध्यान न देने की बात कही।

इसी तरह डेढ़ साल कैसे बीता दोनों को पता ही नहीं चला। यश और संजना दोनों एक दूसरे की दोस्ती में बहुत खुश थे। ज़िंदगी में ऐसे दोस्त मुश्किल से ही मिलते हैं जो आप के लिए आप से भी ज्यादा अहमियत रखते हैं।

क्लास 12वीं,दिसंबर का महीना

जीवन अच्छा चल रहा था, सब ठीक था, किसी चीज़ की मानो कमी ही नहीं थी, पर वो‌ दोनों उम्र के जिस पड़ाव पर थे उसमें अक्सर इंसान इश्क़ में पड़ने की भूल कर ही जाता है। और कमबख़्त इश्क़ पर किसी का ज़ोर भी नहीं चलता है। यश के साथ भी यही हुआ, बीतते वक्त के साथ कब उस के अंदर संजना के लिए फीलिंग्स डेवेलप हो गयी, उसे पता ही नहीं चला। संजना को देखें बिना अब उससे रहा ही नहीं जाता।

वो लाख कोशिश करता अपने आप को कंट्रोल करने की , मगर जब भी वो संजना को देखता, तो बस देखता ही‌ रह जाता। वो जानता था कि ऐसा करना ठीक नहीं है, ये प्यार वगैरह अच्छी खासी दोस्ती को बर्बाद कर देगा... मगर वो कहते हैं ना...

तमाम मसरूफियतों में भी आशिक, बस महबूब को याद करता है...
अच्छे-खासे काम के बंदे को, ये कमबख़्त इश्क़ ही बर्बाद करता है।

भाग-2 समाप्त
© random_kahaniyaan

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