डर ......................
किसी को हैवान का डर है!
किसी को भगवान का।
किसी को अंधेर का डर है,
किसी को उजालों का।
हम सब भले ही कितने भी निडर क्यों न बनलें लेकिन डर से भला बचता कौन है सबको थोड़ा थोड़ा लगता तो है डर।
ऊंचाइयों का डर, फ़िर उसी ऊंचाई से धड़ाम से गिरने का डर, समंदर में गहराई का डर, पहाड़ो में खाई का डर।
बचपन में , खेल खेल में चोट का डर, अंधेरो में भूत का डर, माँ की डांट का डर। वही जवानी में आते आते किताबों से भरी उस भारी सा बस्ता जो कंधे पर चढ़ा उस बोझ का डर, ख़्वाबों से सजे आसमान को टूटते देखने का डर, नौकरी न मिलने का डर, अपनों को खोने का डर, किसी...
किसी को भगवान का।
किसी को अंधेर का डर है,
किसी को उजालों का।
हम सब भले ही कितने भी निडर क्यों न बनलें लेकिन डर से भला बचता कौन है सबको थोड़ा थोड़ा लगता तो है डर।
ऊंचाइयों का डर, फ़िर उसी ऊंचाई से धड़ाम से गिरने का डर, समंदर में गहराई का डर, पहाड़ो में खाई का डर।
बचपन में , खेल खेल में चोट का डर, अंधेरो में भूत का डर, माँ की डांट का डर। वही जवानी में आते आते किताबों से भरी उस भारी सा बस्ता जो कंधे पर चढ़ा उस बोझ का डर, ख़्वाबों से सजे आसमान को टूटते देखने का डर, नौकरी न मिलने का डर, अपनों को खोने का डर, किसी...