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जिन्दगी सबक सिखावै
जिन्दगी सबक सिखावै
अच्छों अच्छों के छक्के छुड़ाती
समय आने पर हर बात
याद दिलवाती
सबसे सगी वो ही ये समझाती
साँसों की आवाजाही में
वो समाई
फिर भी कहलाई हरजाई
खुद को समझे वो महामाई
लिखना तो बहुत कुछ चाहे
पर चाल इसकी
कुछ समझ न आवै
जिन्दगी के बारे में हमें
ये खुद समझावै
सीमित अवधि तक ही
साथ हूँ तेरे
समझ सके तो
समझ ले मुझको
तू लिख सकती
इसी सीमित अवधि में तू
जिन्दगी अपने हिसाब से
जी सकती
फिर उससे पूछने मैं बैठी
इक बात बता तू जिन्दगी
जिन्दगी तो तू सभी को देती फिर समझाती क्यों नहीं
इसे जीना कैसे
तू तो पग पग पे ठोकर देती
इसमें भी अच्छाई के
कड़वे कड़वे बोल सुनाती
कभी कभी तो दिन में ही...