यौम ए पैदाइश
यौम ए पैदाइश रात का इंतज़ार था। उत्सुकता का बोलबाला हो, ऐसी एक अदनी सी चाहत थी।
घड़ी इंतज़ार की अब बस खत्म ही होने वाली थी, दो ही दिन जो बचे थे।
जहाँ इच्छाओँ के पुल को पार करके अपने सपनों के बुगियाल पे गुलिस्ताँ बनाने की चाहत मन में लिए, मैं आज़ाद परिंदा बन उड़ा जा रहा था।
भूल गया...
घड़ी इंतज़ार की अब बस खत्म ही होने वाली थी, दो ही दिन जो बचे थे।
जहाँ इच्छाओँ के पुल को पार करके अपने सपनों के बुगियाल पे गुलिस्ताँ बनाने की चाहत मन में लिए, मैं आज़ाद परिंदा बन उड़ा जा रहा था।
भूल गया...