...

32 views

#Ek safar pyar ke aur...
अभी भी हलकी बूंदा बाँदी बारिश के मौसम की पहचान दे रही थी..... वक़्त शाम का था इसीलिए बाहार में लोग घूमने निकल गए थे। ये बारिश बड़ी अजीब एहसास देती हैं। किस के लिए परेशानी तो किस की ओठों की मुस्कराट बन जाती हैं हाला की यूँ हलकी से बारिश में घूमने की मजा भी कुछ ऐसी होती हैं ,,जैसे उन एहसास को आज तक जितने शब्द दिए गए वो भी कम लगते हैं। यूँ बारिश का आना और फिर कुछ देर बरस के फिर चले जाना,,कभी कभी दिल का हाल बयां करती हैं। आसमान भी साफ़ लगता है तेज बारिश के बाद और दिल ,,,दिल भी यही करने की कोशिस करता रहता हैं। फिर भी आज तक यादों से लढता रहता हैं ,,वक़्त बेवक़्त यादों की भी क्या हकीकत नज़ारा पेश करती हैं। यूँ महसूस होता है ये ज़िन्दगी में एक किरदार बेहत मुश्किल होती हैं।
में "संध्या" और वो "समीर" .....कहने को तो हम ''ना दोस्त थे ''ना हमसफ़र ,,फिर भी कोई डोर था, रिश्ते की जो आज भी उम्मीद बन के दिल में रहती है।
ये उन दिनों की बात थी जब कुछ करने की उम्मीद और कुछ खोने की उम्मीद ने मुझे इतना बेचैन किया था की में अपने काम के अलावा कुछ नहीं देखती थी। में उस वक़्त घर पे रहती थी पर घर में क्या हो रहा है क्या चल रहा है ,,इस सब से बेखबर थी। और समीर के साथ मेरा सादी तैए हो गयी थी.... घर वालो ने समीर को पसंद किया था। दराशाल समीर के साथ पापा का मुलाकात इत्तेफ़ाक़ से काम के दौरान हुआ था और पापा समीर के अछे स्वभाब से बेहत प्रभाबित हुए थे,,फिर वक़्त के साथ समीर काम के सिलसिले में घर आने लगा था ,ये बात मुझे तब पता चलती है जब मम्मी अपने कोई Special dish बनाती थी। समीर को काम करते हुए काफी दिन बीत गया। पर हमारी...