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तेरी-मेरी यारियाँ ! ( भाग - 15 )
तभी मुख्य द्वार की बेल बजती है और देवांश अनुराधा से पूछता है।

देवांश :- माँ,,,,,,, इस समय कौन है ?

अनुराधा :- शायद काम वाली आई होगी।

देवांश :- लेकिन  माँ इस समय क्यों आई है ?

अनुराधा :- पास मे ही रहती है तो खुद ही बोलने लगी आज रात का काम भी कर जाएगी।

देवांश :- अच्छा माँ,,,, वह इतना बोलकर खाना खाने लगता हैं।

अनुराधा भी वहाँ से चली जाती है और दरवाजा खोलकर बोलती है।

अनुराधा :- आओ गीता,,,

यह काम वाली कोई और नही बल्कि निवान की ही माँ गीता है। जिन्होंने आज ही से पार्थ के घर काम करना शुरू किया है।

गीता :- जी नमस्ते मालकिन।

अनुराधा :- आगे जाते हुए,,,,,तुम मुझे मालकिन क्यों बुला रही हो।

गीता :- फिर क्या बुलाऊँ मैं आपको,,,,,,,,मैं तो जिनके भी घर काम करने जाती हूँ। यही कह कर उन्हे बुलाती हूँ।

अनुराधा :- हँसते हुए,,,,,, तुम मुझे दीदी भी तो बोल सकती हो।

गीता :- मुस्कुराते हुए,,,, ठीक है दीदी।

ऐसे ही बात करते-करते वह दोनो रसोई मे चली जाती हैं और देवांश उन्हे देखते हुए बोलता है।

देवांश :- लो भाई,,,,,इनका तो हो गया शुरू।

पार्थ  देवांश की और देखते हुए उससे पूछता है

पार्थ :- हैरान होकर,,, क्या ?

देवांश :- हँसते हुए,,,,,,,,कहानी घर-घर की और क्या।

पार्थ और देवांश खाना खाकर बाहर टहलने चले जाते है। वही गीता भी सारा काम निपटा कर वापस अपने घर चली जाती हैं।

अगला दिन, सुबह के 7:00 बजे

गीतिका का घर,,,,,

कुसुम रसोई मे रोटी तवे पर रखते हुए जोर-जोर से आवाज लगाते हुए बोलती है।

कुसुम :- गीतिका,,,,, गीतिका अरे कहाँ है। नीचे भी आ जा छत पर ही टंगी रहेगी।

गीतिका भागी भागी नीचे आती है और अपनी माँ से पूछती है।

गीतिका :- हड़बड़ाते हुए,,,,, जी माँ आपने मुझे बुलाया।

कुसुम :- घूरते हुए,,,,,नही तो मैंने तो नही बुलाया नीचे उतर कर तो तू ऐसे ही आ गई। जाकर बरामदे की साफ सफ़ाई कर।

गीतिका :- घबराते हुए,,,, लेकिन माँ मुझे तो काम करना ही नही आता। फिर मैं झाड़ू पूछा कैसे लगाऊँगी।

कुसुम :- गुस्से से,,,,तो सीखेगी नही क्या कभी,, शादी लायक उम्र हो गई है। अपनी मानवी दीदी की तरह हमारी छाती पर ही पड़ी रहेगी क्या, चल अब काम कर जाकर।

गीतिका कुसुम की यह बात सुनकर हैरान हो जाती है और मन ही मन सोचती है।

गीतिका :- सोचते हुए,,,,माँ ने ऐसा क्यों कहाँ,, मैं तो अभी बेचारी छोटी सी लड़की हूँ।

तभी मानवी उसको अपने साथ ले जाती है और झाड़ू उठाते हुए गीतिका से बोलती है।

मानवी :- गीतिका आज मैं लगा देती हूँ झाड़ू और तू सीख ले। चाची आएंगी तो मैं बोल दूँगी।

गीतिका :- मानवी दीदी एक बात पूछूँ। माँ ने ऐसा क्यों कहा की मेरी शादी की उम्र हो रही हैं। मैं तो अभी छोटी हूँ।

मानवी :- हाँ गीतिका,,, हमारे गाँव मे अभी भी बाल विवाह होता है। जिसमे से एक घर हमारा भी है।

गीतिका :- चोंकते हुए,,, मानवी दीदी अगर ऐसा है तो आपने अभी तक शादी क्यों नही की।

मानवी :- उदास होकर,,,,छोड़ ना गीतिका फिर कभी बात करेंगे।

गीतिका :- पीछे पड़ते हुए,,,,, प्लीज मानवी दीदी बताओ ना,,, बताओ ना मानवी दीदी,,,दीदी ।

मानवी :- गुस्से मे,,,,, गीतिका बस कर जिद करने की भी हद होती है। जब एक बार मना कर दिया तो बात समझ नही आती।

गीतिका :- मानवी दीदी आप गुस्सा क्यों हो रही है। मै तो ऐसे ही पूछ रही थी।

मानवी और गीतिका बात कर ही रही होती है की वहाँ कुसुम आ जाती है और मानवी को झाड़ू लगाता देख बोलती है।

कुसुम :- क्यों री मानवी,,,, तू क्यों झाड़ू लगा रही है। मैंने तुझे कहा था। चल उसको दे झाड़ू वो लगाएगी।

गीतिका फटाफट से मानवी से झाड़ू लेकर खुद लगाने लगती है और मानवी कुसुम से बोलती है।

मानवी :- चाची आप गुस्सा क्यों हो रही है। मै तो उसको झाड़ू लगाना सिखा रही थी।

कुसुम :- मज़ाक उड़ाते हुए,,,, क्यों तुझे खुद लगाना आता है। जो तू उसको सिखाने चली है।

वह इतना बोलकर वहाँ से चली जाती है। उसके जाते ही मानवी गीतिका से झाड़ू वापस ले लेती है और खुद ही झाड़ू लगाने लगती है।

दोपहर,,, 12:00 बजे ( पार्क मे ),,,,,,,

To Be Continu Part - 16


© Himanshu Singh