...

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अंधेरा
बहुत मुश्किल सें मुझे स्पेशल ट्रेन की टिकट मिली थी | मम्मी ने पहले ही टिकट करवाने को कहा था पर मैं छुट्टियों को लेकर निश्चिन्त नहीं थी |
खैर तय समय सें 12 घंटा लेट मैं धनतेरस के दिन अपने घर पहुंच गयी!
दीपावली वाले दिन मैं छत पे मोमबत्तीयों लगा रही थी, चाहे कितनी लाइट्स लगा लो पर गांव में दिए और मोमबत्ती के बिना अधूरा सा लगता हैँ |
अमावस की काली रात में डूबा गांव और मोमबत्तीयों की टिमटिमाहट एक अलग ही दुनियां में ले जाती हैँ!
मैं अपने छत सें सबके घर का मुआयना करने लगी, बचपन में दोस्तों से आतिशबाजी की जंग लड़ना याद आ गया, हमें बस इसी बात की चिंता थी कि,गांव में सबसे ज्यादा आतिशबाजी हमारे घर से हो ताकि हम छठ पूजा तक गर्व सें फूलते रहें कि हम जीत गये |
सबके घर ही बहुत अच्छी सजावट हुई थी| बस एक घर को छोड़ कर!
कमलेश चाचा का घर
मम्मी से पूछा तो पता चला जब से कमलेश चाचा का देहांत हुआ...