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उदासी
वक्त बदलता है तो पता भी नहीं चलता। हालात बदलते है तो आंधियां चारों ओर से आती है। अब समझ आया, उन हालातों से घुट घुटकर इंसान कैसे जीता है। तब उठता है मन में सवाल, क्यूं खुदा भूल जाता है फलसफा जिंदगी का जब हम बुरे हालात से गुजर रहे होते है। छोड़ अपने बंदों को तन्हा कहां? चला जाता है तू खुदा।

खौफ जादा ये दिल मेरा हर वक्त परेशान सा रहता हैं। बेचैनी का आलम हर वक्त दिल में घर किए बैठा रहता है और छीन लेता है सब सुकून जिंदगी से। कोशिश तो बहुत करती हूं खुश रहने की, पर हालात घबराया सा ही रहता है हर वक्त। जिंदा लाश बनकर जी रहे है हम, हालात से हमारे अनजान सब लगाए बैठे है हमसे आस और उम्मदें ढेरों। बस सबकी उसी उम्मीद पर खरे उतरना चाहते है। इसलिए अपने गमों को हंसकर हम छुपाते हैं। वर्ना जीने की चाहत तो रही नहीं अब।
हर दर्द को जो हंसकर पीना जानती थी। आज ये कैसा दर्द तूने दिया खुदा के चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पा रही हूं, खुदको मैं संभाल नहीं पा रही हूं। हालात ऐसे हो गए है किसी से बात करने को भी जी ना चाहता। बस खुदमे गुम रहने लगी हूं।
© Silent Eyes