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अद्रश्य ओशो.......
ओशो के निर्वाण दिवस पर उनके लिये सप्रेम सत्कार......
मैने लगभग आज से 2 साल पुर्व ओशो को पड़ना शुरू किया था..... और आज तक पड़ रहा हूँ..... अगर आपको ओशो को पड़ना है तो ओशो की ज़रुरत ही नही है..... बस विचारो को शाँत करके खुद को पड़ लिजिये.... आप स्वम ओशो है... वो और होते है... जो आपको किताबो के किरदार का ज्ञान देंगे..... ओशो तो वो मास्टर है जिन्होने रूह के किरदार को पड़ लिया था..... उसके बाद उन्होने स्वम को बुद्ध की परछाई बना लिया..... ओशो बुद्ध की वो परछाई है जो श्री कृष्ण की तरहा उत्सव करती है.....श्री राम की तरहा मर्यादा भी पता है..... जो गुरू नानक की तरहा देना जानते है..... ओशो वो नज़र है जो सिर्फ अस्तित्व को उप्लब्ध है..... ओशो आत्मा के नियम की किताब है.... अगर ओशो होना है तो मश्तिक्ष के विचारो को शून्य तक ले कर जाना होगा.... हर पल अपने निर्वाण को नज़र मे रखना होगा...... बाकी आपकी मर्ज़ी..... जब आपकी नज़र स्वम के निर्वाण पर हो.... फिर वंही ठहर जाओ..... मस्ती करो.... आनंद लो... उसके विचारो से द्रवित मत होना...... द्रवित हो गये तो निराशा से भर जाओगे.... पीड़ा घेर लेंगी.... अगर अपने निर्वाण मे कोई कमी लगे तो उसमे सुधार करो.... बस ईतना सीख लो.... की अपका अस्तित्व आपके निर्वाण की रचना करता है....... वो रचना आपको कैसी करनी है..... आप जैसी रचना चाहते है उसके लिये इस साँस से ध्यान करो..... और तब तक ध्यान रखना जब तक तुम स्वम परमात्मा ना हो जाओ....... अपना भाग्य खुद ना लिख सको..... बस इस साँस को अपने अस्तित्व की चमक बना लो.... और जाग जाओ सदा के लिये... फिर मत सोना.... ओशो कहते है.... अपना अस्तित्व चुन लो बस.... बाकी तो सब तर्क का खेल है.... और ओशो तर्क का एक ऐसा अभेद किला है.... जिसको कोई भेद नही सकता..... ओशो नज़र को प्रणाम....
#ओशो #अनुभव #ध्यान #बद्धा