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सयेद वोह सभी सही है ।
थी वोह 19 साल की थी । उसे पर्ढ़ने की बोहोत सोख थी । और उचा सपना देखना उस्की आदत थी । उसमे बस सपना देखना नही पुरा करने का भी भरपुर हिम्मत और जशवा थी ।
पर होती थी एसी की वोह कुछ भी करे फैल ही हो जाती थी । या फिर कम फल मिलता था उससे आपनी चाहत से । फिर तोह सुरु होती थी सबके लन्थी बोलना उसे ।

। तुह कुछ नही कर सक्ती , तुझसे कुछ नही हो सक्ता , सब आपने जो एक करते है वोह सही से करते है , पर तुह है की कहीं भी खुध को साबित नही कर सक्ती ।

बाकी और क्या कहे , उसने इस्स चिज को मान ली की हो सक्ता है की सब सही कह रह है - पर क्या पता कब क्या हो जय , और मुझे सफलता मिल जय । येही बोल के वोह आगे बढ़्ती गयी ।

( तोह रुकना नही बस चलते जाना है । देखे तोह आगे क्या रखा है ।
किसी के कहने को सुनो पर आपने दिमाग से उसे रूप दौ ,सही ढंग से ।
)


( एक लरकी की कहानी , की एक छोटी झलक ) (आशा है पसंद आय )
© _silent_vocal_