आत्म संगनी का समर्पण और स्नेह
*आत्म संगनी का समर्पण और स्नेह*
हमारी प्रेम कहानी को अब लगभग दो वर्ष का अंतराल गुजर चुका था। इस अंतराल में मेरी आत्म संगनी का मेरे प्रति समर्पण भाव जिस तेजी से बढ़ा निसंदेह उसने यह साबित कर दिया था कि प्रेम ,स्नेह की पाकीज़गी आत्मा से दिखाई देती है शरीर के भौतिक सुख को प्रेम ,स्नेह या संगम नही कहा जा सकता है। उसकी दिन ब दिन मेरे प्रति दीवानगी ने मुझे अधीर कर रखा था। उसका मेरे प्रति जहां एक ओर समर्पण था वही दूजी ओर किसी पराई नार के मेरे प्रति आसक्त होना भी उसे गवारा नहीं था। पराई औरत यदि मेरे तरफ देख भी ले तो भी उसको क्रोध आता था।उसके अंदर का गुस्सा स्पष्ट उसके व्यवहार में दिखाई देता था। इस सब के बावजूद उसका मुझे देख देख कर बलाएं लेना मेरे प्रति उसकी भक्ति का प्रमाण ही नही वरन उसकी मेरी प्रति समर्पण की भावना को उजागर करती थी। उसकी मौजूदगी मेरी आंखों से अधिक मेरी सांसों में पाई जाती थी। में धन्य हूं ऐसी आत्म संगनी को पाकर जिसका मेरे प्रति समर्पण भाव मुझे इंसान से देवता बनाए हुए है।
© SYED KHALID QAIS
हमारी प्रेम कहानी को अब लगभग दो वर्ष का अंतराल गुजर चुका था। इस अंतराल में मेरी आत्म संगनी का मेरे प्रति समर्पण भाव जिस तेजी से बढ़ा निसंदेह उसने यह साबित कर दिया था कि प्रेम ,स्नेह की पाकीज़गी आत्मा से दिखाई देती है शरीर के भौतिक सुख को प्रेम ,स्नेह या संगम नही कहा जा सकता है। उसकी दिन ब दिन मेरे प्रति दीवानगी ने मुझे अधीर कर रखा था। उसका मेरे प्रति जहां एक ओर समर्पण था वही दूजी ओर किसी पराई नार के मेरे प्रति आसक्त होना भी उसे गवारा नहीं था। पराई औरत यदि मेरे तरफ देख भी ले तो भी उसको क्रोध आता था।उसके अंदर का गुस्सा स्पष्ट उसके व्यवहार में दिखाई देता था। इस सब के बावजूद उसका मुझे देख देख कर बलाएं लेना मेरे प्रति उसकी भक्ति का प्रमाण ही नही वरन उसकी मेरी प्रति समर्पण की भावना को उजागर करती थी। उसकी मौजूदगी मेरी आंखों से अधिक मेरी सांसों में पाई जाती थी। में धन्य हूं ऐसी आत्म संगनी को पाकर जिसका मेरे प्रति समर्पण भाव मुझे इंसान से देवता बनाए हुए है।
© SYED KHALID QAIS