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विराट पुरुष 'ब्रह्म'
ब्रह्म आदि है, अनंत है, सर्व शक्तिमान है।
ब्रह्म गुण से परे है मतलब निर्गुण, निराकार किंतु ब्रह्म सभी गुणों को ग्रहण भी करते हैं।
ब्रह्म सुप्रीम गॉड हैं।

ब्रह्म में विकार उत्पन्न हुआ तब ब्रह्म को एक से अनेक होने की इच्छा हुई तो उन्होंने अपने एक चौथाई भाग से सृष्टि की कल्पना की।
अपनी कल्पना के अनुसार सृष्टि में सर्वप्रथम महतत्त्व प्रकट हुए। जब महतत्त्व में विकार उत्पन्न हुआ तो अहंकार तत्व पैदा हुआ।
अहंकार तत्व के गुण के रूप में बुद्धि और #मन का जन्म हुआ। अहंकार तत्व से ही आकाश तत्व की उत्पत्ति हुई।
आकाश के गुण के रूप में शब्द प्रकट हुई और विकार के रूप में वायु।
वायु के गुण के रूप में स्पर्श प्रकट हुई और विकार के रूप में अग्नि।
अग्नि के गुण के रूप में रूप प्रकट हुई और विकार के रूप में जल।
जल के गुण के रूप में रस प्रकट हुई और विकार के रूप में पृथ्वी।
पृथ्वी के गुण के रूप में गंध प्रकट हुई और विकार के रूप में वनस्पतियाँ।
इस तरह पंचमहाभूत की उत्पति हुई... आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी और उनके पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध।

ब्रह्म की इच्छा पाँचो गुणों को ग्रहण करने का हुआ तो पाँच ज्ञान - इंद्रियाँ उत्पन्न हुई।
शब्द को ग्रहण करने के लिए कान, स्पर्श को ग्रहण करने के लिए चर्म, रूप को ग्रहण के लिए आँख, रस को ग्रहण करने के लिए जिह्वा और गंध को ग्रहण करने के लिए नाक की उत्पत्ति हुई।

समस्या अब ये थी कि सभी गुण प्रतीत किये जा सकते थे किंतु ग्रहण कैसे किया जाए??

तब पाँच कर्म - इंद्रियाँ उत्पन्न हुई- हाथ, पैर, मुख, जैनेंद्रिय और गुदा - मार्ग।

इस तरह से 24 तत्व उत्पन्न हुए।

ब्रह्म ने इन सभी तत्वों के नियंत्रण हेतु सभी 24 तत्वों के पद पर अनुयायी बैठाये जो उनके आदेश का पालन करता है।

इस तरह विराट पुरुष ने इन 24 तत्वों से ही जीव और जगत यानी प्रकृति की उत्पत्ति की।

जब विराट पुरुष की इच्छा समाप्त हो जाती है तो विपरीत क्रम अनुसार पृथ्वी से वनस्पति समाप्त हो जाती है, पृथ्वी को जल निगल जाता है, जल को अग्नि अपने अंदर ले लेता है, अग्नि को वायु अपने अंदर समा लेता है, वायु आकाश में लीन हो जाता है, आकाश अहंकार में और अहंकार महतत्त्व में विलीन हो जाता है।
महतत्व को विराट पुरुष अपने भीतर समा लेते हैं।

ये प्रक्रिया पुनः दोहराते रहते हैं।

प्रकृति को ही माया कहते हैं।

जीव पर प्रकृति शासन करती है और प्रकृति पर ब्रह्म शासन करता है।
जीवों में श्रेष्ठ मनुष्य है।

जीव का ब्रह्म के बारे में जानने की जिज्ञासा ही मनुष्य को वेद की ओर खींचता है।

वेद को ब्रह्म माना गया है।

बुधिजीवि मनुष्य वेद से ही ब्रह्म को जानने की जिज्ञासा का प्रारंभ करते हैं।

वेद से पूछा गया कि आपका स्वरूप क्या है??
आप कहाँ रहते हैं??
आपकी जाति क्या है??

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