...

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गाँव की गलियाँ
वो गाँव की कच्ची गलियाँ
और मिट्टी की वो मढ़ैया

वो सुने पड़े खेत खलिहान
हो गयी पगडंडी सुनसान

आंगन में चूल्हे और लकड़ी
उदास पड़ी वो ऊंची अटारी

कुएँ का मीठा मीठा पानी
आज भी राह तके तुम्हारी

इन शहरों की चकाचौंध में
गुम हो गए कितने ही गाँव

लौट आओगे शायद एक दिन
सोच रहे हैं सब बारी बारी!!
© ऊषा चित्रांगद