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बचपन (भारतांकित भाग-३)
अपनी भारतांकित नामक यात्रा को जारी रखते हुए कुछ पंक्तियां आगे जोड़ता हूं। इस बार बात बचपन की हो। शरारतों और सीख से भरा बचपन ही उम्र का वह दौर है जब सुकून सबसे ज्यादा है, बस इस बात का ज्ञान हमें शयाने हो कर पता चलता है। तो आओ उस बचपन को याद कर थोड़ा गुदगुदा लेते हैं मन को।

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अंकित उस मैदान को करूंगा
जो फैला था आजादी से
कही कबड्डी कही अखाड़ा
कही मेले और वादी से

अब सिमट गया हूं बड़े शहर
की छोटी चारदीवारी में
चकाचौंध है और दिखावा
स्पर्धा की तैयारी में

हृदय की गहराई में बैठा डर
किस बात का है, पता नहीं
छोटी बात की घबराहट
किस राज का है, पता नही

छुक छुक करती रेल गाड़ी
वो साइकिल की रेस
पिकनिक जाने की खुशी
वो नया स्कूल का ड्रेस

नए किताबो में जिल्द
अब नहीं लगाते हैं
बस्ते में कॉमिक्स भर कर
ऑफिस को नहीं ले जाते हैं

शाम को अचार भात
वो रात के सत्तू पराठे
वो कच्चे आम की बगिया
वो छत पर बिताई रातें

कभी शक्तिमान देखने की साजिश
तो कभी बैडमिंटन के लिए मिन्नते
मां को मानाने के लिए
सारी जद्दोजहत सारी सिद्दते

पापा को आने दो फिर उनको बतलाती हूं
इसी बहाने सारा काम आज इनसे ही करवाती हूं
आज भर की बात है, हम सब कुछ साफ कर देंगे
पापा के आने के पहले मां हमको माफ कर देंगे

to be continued......

© अंकित राज "रासो"

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