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कन्यादान (पंचम भाग)
रास्ते में गाड़ी ड्राइव‌ करते समय सतीष बहुत परेशान था। वह ठीक से ड्राइव भी नहीं कर पा रहा था। डर लग रहा था, कहीं एक्सीडेंट न हो जाए। उसने गाड़ी साइड कर दी। उसने अपना सिर स्टीयरिंग से टीका दिया। प्राची ने पूछा, क्या हुआ। उसने जवाब दिया, मैं जी नहीं पाऊंगा.... मर जाऊँगा मैं.... प्राची ने हाथ पर हाथ रखकर हौसला बंधाने की कोशिश की। वह समझ रही थी कि सतीष का कोई कसूर नहीं है.... वह भी परेशान हैं....

सतीष : तुमने तो कुछ नाश्ता भी नहीं किया.... मुंह में कुछ डाला भी नहीं.... घर से निकल गई....
प्राची : कोई बात नहीं.... तुम तो मेरे साथ हो....
सतीष : मेरे होने से पेट थोड़े न भर जाता है.....
प्राची : मुझे भूख नहीं है.... मैं घर जाकर खा लूंगी....

सतीष : और मैं.... घर पहुँच भी पाऊंगा या नहीं....
प्राची : तुम ऐसा क्यों सोचते हो.... मैं तुमसे अलग थोड़ी न हो रही हूं....
सतीष : और मैं.... एक भी वचन नहीं निभा पा रहा हूँ.... अपनी ही नजरों में गिर गया हूं....

प्राची : ऐसा कुछ नहीं है सतीष.... (उसके हाथों को अपने हाथों में लेते हुए) मैं तुम्हारे साथ हूं और रहूँगी....
सतीष : मैं भी....

दोनों तरफ से चुपी छा गई, बस एक दूजे‌ की आंखों में देख रहे थे दोनों....

सतीष ने अचानक गाड़ी स्टार्ट की। वह सीधे रेस्तरां लेकर पहुँचा।

सतीष : चलो पहले नाश्ता करते हैं....
प्राची : नहीं, मैं घर जाकर कर लूंगी....
सतीष : और मैं.... न जाने कब मौका मिलेगा.... साथ खाने का....

प्राची : चलो मैं घर पर खिला दूंगी, तुम्हें....

सतीष : नहीं, मुझे तुम्हारे साथ खाना हैं.... सिर्फ तुम्हारे साथ.... मैं मम्मी की बातों के लिए तुम से माफी माँगता हूं.... चलो पहले नाश्ता करते हैं.... प्लीज....

प्राची न चाहते हुए भी अपने को रोक नहीं पाई। सतीष का मान रखने के लिए वह रेस्तरां में चली गई। दोनों ने किनारे के टेबल पर बैठ कर नाश्ता किया।

सतीष : आज मैं मजबूर हूं.... पर मैं हारुंगा नहीं.... मैं तुम्हें लेने आऊंगा.... मुझे वचन दो, तुम मेरा इंतजार करोगी....

प्राची सतीष की आंखों में देखती रह गई.... कुछ बोल नहीं पाई.... थोड़ी देर बाद सिर हिलाकर हां में उत्तर दिया। वह रो पड़ी.... उसकी आंखों से आंसू निकल आए। उसने छिपाने की कोशिश की। रुमाल से आंखों को पोंछ लिया। सतीष उसे सहारा देकर गाड़ी में ले आया। उसने गाड़ी स्टार्ट की और प्राची के घर चल दिया।

प्राची को सतीष के साथ अचानक देखकर रामलाल मोहिनी हतप्रभ रह गए।

रामलालजी : क्या बात है बेटा.... यूं अचानक.... सब खैरियत तो है....

प्राची रोने लगी.... सतीष के मुंह से कोई जवाब नहीं निकला.... मोहिनी प्राची को लेकर अंदर चली गई.... रामलालजी ने मनीष बाबू को फोन लगाया....

रामलालजी : हलो.... मनीष बाबू.... क्या बात है....

मनीष बाबू : आई एम सारी, रामलालजी.... मैं खुद ही नहीं समझ पा रहा हूँ.... इसके पहले मैने शालिनी का कभी ऐसा रुप नहीं देखा.... मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ.... मैं आपसे वादा करता हूँ.... जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.... आप बिलकुल चिंता न करें....

रामलालजी : पर बात क्या है....

मनीष बाबू : किचेन की रश्म निभानी थी.... प्राची को नहीं आता.... शालिनी ने कहा, सीख कर आओ.... मेरी समझ में और कुछ नहीं आया....

रामलालजी : कितनी बदनामी होगी, मनीष बाबू....
मनीष बाबू : आप संभालिए रामलालजी.... मैं जल्दी ही कुछ करता हूँ....
रामलालजी : बस आप ही का आसरा है, मनीष बाबू.... जल्दी कुछ कीजिए....
सतीष : (रामलालजी से) पापा मैं चलता हूं....
रामलालजी : ऐसे कैसे चलता हूं.... शादी के बाद पहली बार घर आए हो, हमारा कुछ फर्ज है न....
सतीष : पहली बार.... यह भी कोई आना है, पापा....
रामलालजी : कोई बात नहीं, पर हमारा तो फर्ज है.... निभाने दो....

(मोहिनी से) सुनती हो, अंदर ले जाओ, सतीष को....

मोहिनी : जी, आई....

मोहिनी ने प्राची को सलाह दी, सतीष को कमरे में ले जाओ। प्राची सतीष को कमरे में ले गई। चेंज करने के लिए कपड़े दिए। वाथरुम में फ्रेश होने के लिए आग्रह किया....

सतीष : अभी फ्रेश होता हूँ, थोड़ा ठहर जाओ....

प्राची मुंह हाथ धोकर चाय का इंतज़ाम करने चली गई। थोड़ी देर में दो कप चाय लेकर आई तो देखा, सतीष अभी भी वैसे ही बैठा है। प्राची ने तुरंत मुंह धोने का आग्रह किया तो सतीष ने धो लिया और फिर प्राचीं के संग चाय लेने लगा। सारा दिन वहां बिताकर शाम को वह वापस अपने घर आ गया।

मनीष बाबू ने सोंचा कि दो चार दिन में गुस्सा उतर जाएगा तो शालिनी मान जाएगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा पर यहां तो वह जिद पकड़ कर बैठ गई, जब तक रसोई का काम पूरा सिख नहीं लेती, वहीं रहे।

प्राची ने भी तय कर लिया कि अब वह पूरी तरह से सीखने के बाद ही ससुराल जाएगी। थोड़ा मन हल्का हुआ तो उसने एंट्रेंस की ट्यूशन क्लासेस फिर से ज्वाइन कर ली और अपनी तैयारी शुरु कर दी। धीरे धीरे दिन बितने लगे और प्राची पूरी तरह से पढ़ाई में लिप्त हो गई। सतीष भी अपनी तैयारी में लग गया और आफिस जाने लगा। बीच बीच में दोनों की फोन पर बातें हो जाया करती तो कभी घाव हरे हो जाते या कभी शुकुन मिल जाता। ऐसे ही एक महीने निकल गए तो एक दिन मनीष बाबू अचानक रामलालजी से मिलने उनके घर आ पहुँचे।

मनीष बाबू : बड़े दिन हो गए बिटिया को देखे, मन नहीं लग रहा था, सो चला आया....
रामलालजी : नमस्ते, अंदर आइए ना.... वहां क्यों खड़े हैं....
मनीष बाबू : मैं तो अपना घर निहार रहा हूँ....
रामलालजी : प्राची, देख ना, तुमसे मिलने कौन आया है....

प्राची : (अंदर से ही आवाज लगाई) अभी आई पापा....
बैठकखाने में आकर, (दूपट्टे को सिर पर लेते हुए) अरे पापा, आप (चरण स्पर्श करती हैं)

मनीष बाबू : जीती रह बेटा....

रामलालजी : अंदर ले जा बेटा.... जलपान करा....
प्राची : जी पापा....
मनीष बाबू को अपने कमरे में लेकर चली गई।

प्राची : यहां वाशरुम हैं पापा, आप मुंह हाथ धो लिजिए.... तब तक मैं चाय का इंतज़ाम करती हूँ....
मनीष बाबू : ठीक है....

चाय पीने के बाद मनीष बाबू ने प्राची को अपने पास बिठाया।

मनीष बाबू : और बेटा आजकल क्या कर रही हैं.... एंट्रेंस की तैयारी कर रही हैं न....
प्राची : जी पापा....

मनीष बाबू : सोंचा था आखों के सामने तैयारी कराउंगा.... देखें तो सही, कैसे होती है तैयारी.... पर वो तो हो न सका.... खैर मैं भी जिद्दी हूं.... तू भोजन बनाना सीखे या न सीखे, पर कलेक्टर बनाकर तुझे मैं अवश्य यहां से ले जाऊंगा.... यह मेरा तुझसे वादा है....

प्राची : जी पापा....

मनीष बाबू : मेरा मान रखना बेटा.... चाहें जो खर्च लगे.... कोई परवाह नहीं.... (कहते हुए उन्होंने दो लाख रुपये का बंडल प्राची के हाथ में रख दिया)

प्राची : इसकी ज़रुरत नहीं, पापा.... पापा ने सारा इंतज़ाम कर दिया है....
मनीष बाबू : तो मै तुम्हारा कोई नहीं....
प्राची : सारी पापा, मैने उस उद्देश्य से नहीं कहा....
मनीष बाबू : तू कुछ मत कह बेटा.... बस एंट्रेंस पास कर मेरा मान रख दे, बस....
प्राची : अवश्य पापा....

मनीष बाबू : अब मैं चलता हूं.... अपना खयाल रखना.... कोई भी जरुरत हो तो मुझे फोन कर देना.... इसी बहाने मिलने आ जाउँगा....
प्राची : जी पापा….

मनीष बाबू को छोड़कर प्राची ने उनके द्वारा दिए पैसे रामलालजी को दिए।

प्राची एंट्रेंस में बैठी। परीक्षा के बाद उसे उम्मीद थी कि इस बार उसे मौका जरुर मिल जाएगा परंतु कंपटीशन में फल आने से पहले कुछ भी कहना ठीक नहीं होता।

उधर शालिनी की रुचि भी अखबार और टीवी पर एंट्रेंस एग्जाम्स के बारे में जानकारी रखने में बढ़ गई। वह किसी को बताती नहीं पर चूपके से खबर अवश्य रखती। रोज कालम देखते मनीष बाबू ने भांप लिया तो एक दिन प्रश्न कर डाला, “किसी का रिजल्ट देखना है क्या”?

शालिनी : मुझे क्या लेना देना.... मैं तो बस ऐसे ही....

मनीष बाबू मन ही मन बूदबूदाए, किसी की नजर न लगे, मेरे प्राची को.... सफलता उसके कदम चूमे.... मेरा मान रहे.... भगवान मनोकामना पूर्ण करे....

शालिनी ने अखबार आते ही एक दिन लपक कर देखा तो उसे रिजल्ट निकलने का समाचार दिख गया। उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। वह अखबार लेकर अपने कमरे में भागी और बैठ कर ढूंढने लगी। उसके खुशी का पारावार नहीं रहा जब उसने पांचवे नंबर का नाम देखा।

शालिनी : अजी सुनते हो, मातारानी ने हमारी तपस्या पूरी कर दी.... हमारी झोली भर दी.... (ड्रायर से पैसे निकाल कर देते हुए) सतीष, पांच किलो बूंदी के लड्डू ले आ.... जल्दी.... अभी के अभी....

मनीष बाबू : अरे क्या हुआ.... कुछ बताओ भी....
शालिनी : मुझे जल्दी स्नान करना है.... मातारानी की पूजा करनी है.... आज मैं बहुत खुश हूँ, मातारानी ने मेरी सुन ली....

सतीष : मम्मी, हमें भी तो बताओ हुआ क्या है....
शालिनी : अरे पगले! हमारी प्राची पास हो गई.... पांचवा स्थान मिला है उसे....
मनीष बाबू : क्या....
शालिनी : हां, यह देखो....
मनीष बाबू : पर तुम क्यूं खुश हो रही हो....
शालिनी : क्या मेरी वह कोई नहीं....

मनीष बाबू : हां, है.... पर....

शालिनी : अभी पर वर छोड़ो और फटाफट तैयार हो जाओ.... मुझे बहुत काम है.... पूजा करनी है, प्रसाद चढ़ाना है.... गाजर का हलवा बनाना है और प्राची को लेने जाना है, वह भी सबके साथ....

मनीष बाबू : मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा, तुम क्या करना चाहती हो....

शालिनी : पहले सभी कोई तैयार हो जाओ, पूजन के लिए.... बाकी मैं प्राची के सामने बताउंगी....
मनीष बाबू : जय स्वामीनारायण! न जाने मोहतरमा अब क्या करना चाहती है....
शालिनी : ज्यादा सोंचों मत.... जो कहती हूं, पहले करो....
मनीष बाबू : भगवान बचाएं, इस बला से....

शालिनी शुद्ध होकर हवेली के प्रांगण में बने मातारानी के मंदिर में, सबके साथ पूजा की और तुरंत जूट गई गाजर का हलवा तैयार करने में। फटाफट तैयार होकर गाड़ी में बैठ पूरे परिवार के साथ प्राची के घर पहुँच गई। पूरे परिवार को अचानक इकठ्ठा देखकर प्राची के घरवालों को बेहद आश्चर्य हुआ। मोहिनी ने सबको अंदर ले जाकर बैठाया। प्राची ने आकर चरण स्पर्श किये। शालिनी ने उसे गले से लगा लिया और मातारानी का प्रसाद खिलाया। प्राची को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, वह चकित हो देख रही थी।

शालिनी : (प्राची से) बेटा, मातारानी ने मेरी सुन ली.... मेरी मुराद पूरी कर दी.... नारी शक्ति की लाज रख ली.... मुझे माफ कर दे बेटा.... मैंने तुझे बहुत दुख दिए.... पर यह जरुरी था, तुम्हारी कामयाबी के लिए....

प्राची : मम्मी, मैं समझ नहीं पा रही हूं....

शालिनी : तूने जो शर्त सतीष के सामने रखी था, वैष्णवी ने सुन लिया था.... मुझे बताई.... मैं रात भर सो नहीं पाई.... वहां रहती तो तुम्हारा शर्त पूरा होना मुश्किल हो जाता.... तुम्हें हारते हुए कैसे देख सकती मैं.... एक औरत हूं और मां भी.... मातारानी ने उपाय सुझाई और मैंने दिल पर पत्थर रख लिया....

प्राची की आंखें भर आई, मुंह पर ताले लग गए। उसका कंठ रुंध गया। मां के लिए क्या सोंचा और वह क्या निकली। वह चरणों से लिपटकर रोने लगी। मुझे माफ कर दीजिए मम्मीजी, मैं समझ नहीं पाई।

शालिनी : बस कर बेटा, सबको रुलाएगी क्या.... खुशी का दिन हैं.... मैने मातारानी से वादा किया है, पास हो जाओगी तो उसी दिन लेकर मंदिर आऊँगी.... चल बेटा, अब चलें….

मोहिनी : वाह समधनजी, कितनी आसानी से माफी माँग ली और चलने के लिए कह दिया…. यहां कितनी बदनामी हुई, उसका क्या…. आप तो आराम से रही, लोगों से नजरें तो हमें चुरानी पड़ी….

शालिनी : बहनजी, मैं मानती हूँ, मेरे कारण आपलोगों को तकलीफ हुई लेकिन मैंने सतीष की मां नहीं बल्कि प्राची की मां की तरह फैसला लिया है…. मैने एक औरत होकर एक औरत का साथ दिया हैं…. मैने प्राची की सास की तरह नहीं मां की तरह सोंचा है…. हां मै गुनहगार हूं पर प्राची की नहीं…. सतीष की, जिसके स्वार्थ का गला घोंटकर मैने प्राची के आत्म सम्मान को उत्तम मान दिया है…. यदि मैं कहती कि सतीष एग्जाम्स तक प्राची से बात मत कर तो क्या दोनों मान जाते…. यदि मैं कहती कि सतीष प्राची को उसके मायके छोड़ आ ताकि वह एग्जाम्स की तैयारी कर सके तो क्या वह छोड़ जाता और आप क्या रख लेती….

मोहिनी : आपने कहा और हमने सुन लिया, पर लोगों को क्या बताएंगे…. वे इन बातों को इतनी आसानी से पचा पाएंगे….

शालिनी : बहन जी, आपकी तो सिर्फ बदनामी हुई है, मैने तो रोज अपने ही परिवार के आंखों में चूभने का कष्ट सहन किया है…. उनकी नजरों से गिरती रही हूं मै…. क्या मुझे पता नहीं चला, सतीष के पापा जब यहां आए…. क्या मैंने उनकी पर्सनल डायरी में पैसों का जिक्र नहीं देखा…. मैं खुश हुई, चलो इस कोशिश में मै अकेली नहीं हूं…. मुझे बल मिला…. जीवन में पहली बार ऐसा हुआ कि हमारा पति भी मुझे गलत समझ बैठा….. मैने वह दंश भी बर्दाश्त किया…. एक दिन के रिश्ते के सामने मैने न सिर्फ अपने जीवन भर के रिश्ते को दांव पर लगाया बल्कि खुद के लिए शूल मोल लिया था….

मोहिनी : बात तो रसोई के रश्म की थी….

शालिनी : रसोई की रश्म तो हमारे यहां अनिवार्य प्रथा है पर उसके लिए मै प्राची को तब भी सीखा सकती थी और अब भी खुद सीखा लूंगी…. मेरे घर में सारे काम के लिए नौकर हैं पर भोजन मैं अपने हाथों से बनाती हूँ…. नौकरों का बनाया या होटल का खाना खाकर आज तक परिवार को बिमार नहीं होने दिया है…. आगे भी नहीं होने दूंगी….

प्राची : हां मां…. मम्मीजी सही बोल रही हैं….
मोहिनी : क्या….
प्राची : हां मां….

मोहिनी : (अपने को संभालते हुए) बस बहन, मुझे माफ कर दो…. मुझे क्या पता कि आप इसकी यशोदा मैया हैं…. जन्म तो मैने दिया पर कर्म आपने…. आप धन्य हैं….

शालिनी : (प्राची से) चल बेटा, मातारानी का बुलावा आया है…. चल मंदिर चलें....
प्राची : हां मम्मीजी, अभी आई…..


© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey