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जिंदगी जमीन है
जिंदगी जमीन है
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कटिहार - एक शानदार और जानदार शहर । कहने को तो दिल्ली और मुंबई देश के सबसे महंगे शहरों में शुमार हैं लेकिन जिन्होंने यह सर्वे किया है वे अभी भी मां के गर्भ में ही है और उन्होंने कटिहार नहीं जाना । महंगाई के मामले में अमेरिका का न्यूयॉर्क शहर भी पीछे छूट जाए । यहां आपको खड़े होने की भी कीमत चुकानी पड़ सकती है ।

सामान्य दिनों में चारों तरफ धूल - ही - धूल उड़ती आपको यह एहसास दिलाती रहती है कि एक दिन आपको इसी धूल में ही मिल जाना है । यह कोई मामूली धूल नहीं । यह धूल है लोकतंत्र की । आपको अपना बेशकीमती वोट देकर ज्यादा - से - ज्यादा धूल उड़ाने वाले को चुनना होता है। तब जाकर यह दुर्लभ धूल आपके फेफड़े में जाकर आपको सुकून दे पाता है और मरते वक़्त आपका छाती शान से फूला रहता है। इससे बढ़िया इम्यूनिटी बूस्टर और कोई नहीं । आपको किसी तरह की कोई चूरन लेने की जरूरत नहीं । सीधा आपके नाक और मुंह को तर करते हुए आपके श्वसन तंत्र की क्षमता बढ़ाते हुए आपके दिलों दिमाग को दुरुस्त कर देगा । कोई यहां निकम्मा नहीं । सभी धूल झाड़ने और मच्छर मारने में व्यस्त हैं । यहां की फिजाओं में खास किस्म की खुसबू लिए यह धूल यूं ही नहीं आता । इसका एक पेटेंट तरीका है । नालियों से पहले कीचड़ निकालकर नालियों के ही किनारे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है और जो उत्तम किस्म का पावडर जैसा धूल होता है प्राकृतिक तरीके से धीरे - धीरे यहां की फिजाओं में घुल - घुलकर आपको एक नशा सा देता रहता है । मोटका धूल फिर से नाली में अपने आप चला जाता है और फिर से अगली बार की तैयारी में लग जाता है । यहां के चाट - घुपचुप के अद्भुत स्वाद का श्रेय इसी पवित्र और खुशबूदार धूल और लाल पानी को जाता है । इस शहर को छोड़ने वाले यहां के नायाब स्वाद को नहीं भूल सकते और कुछ तो यहां के पीले चाट पर कविताएं लिखते - लिखते राष्ट्रकवि हो जाते हैं ।

' जल ही जीवन है ' इस बात को यहां के लोगों से ज्यादा कोई भी नहीं जान सकता । जल जीवन देता है तो ले भी लेता है तो क्या ग़म है । हर साल आपको वैतरणी पार करवाने के लिए बाढ़ खुद चली आती है और कुछ उनके साथ अनंत यात्रा पर निकल जाते हैं । यहां के पानी में भले ही फ्लोराइड और शीशा हो मगर लोगों ने इसे भी आयरन ही मानकर अपने जीवन में आत्मसात कर लिया है। गोरा आदमी भी आयरन की प्रचुरता लिए थोड़ा अजीबोगरीब लाल - पीला होकर अपने सफेद दातों पर पीला तो कहीं काला परत चढ़ाए अपने सफेद गंजी को ठीक लाल - लाल किए दांत निकालकर हंसता हुआ आपको लगभग हर जगह दिख ही जाएगा । धूल आपका वजूद है और पानी का आयरन ही आपको भीतर ही भीतर लौह पुरुष का रूप देता है जिसको कोई भी साधारण पुरुष आपके लाल - लाल होते बनियान से ही भांप लेता है । यह दोनों आपको बिना किसी दाम के समान रूप से पोषित कर समानता के भाव को स्थापित करता रहता है । जीवन की इस सच्चाई को यह शहर आपको चाह कर भी भूलने नहीं देता ।

यहां कोई हवा - हवाई नहीं है । लोग यहां जमीन से जुड़े हैं । जमीन ही लोगों का वजूद है। जिंदगी ही जमीन है । पैदा होने का एकमात्र लक्ष्य है – ‘एक धूर जमीन’ । अंत में सबकुछ मिट्टी में मिल जाएगा सो मिट्टी से अत्यधिक लगाव है यहां । जैसा पानी वैसा ही भेष और विचार । यहां के पानी के शीशा , आयरन और फ्लोराइड को लोगों ने चरणामृत की तरह पी - पीकर पानी का सारा शीशा , आयरन और फ्लोराइड अपने पेट में जमा कर फुला रखा है । हर फुले हुए पेट में फैट या चर्बी होता है इस भ्रम में ना रहें , शीशा और आयरन का गोला भी होता है या फिर नेचुरल गैस । बढ़े हुए पेट को देख गलती से भी आप ये मत समझ लीजिएगा कि आदमी यहां कसरत नहीं करता है और हेल्थ कॉन्शस नहीं । यहां आदमी सीरीयस होने के बाद ही सीरीयस होता है और उससे पहले सीरीयस होकर सीरीयस नहीं होना चाहता । यहां का गुणकारी पानी मिनरल वाटर को उठाकर पटक देने की हैसियत रखता है । किसी भी बाबे के काढ़े से ज्यादा असरदार यहां का रोगनाशक जल है । बस आप आंख बंद कर अपने इष्टदेव का नाम ले लेकर पीते रहें बाकी तो विधि का विधान स्वयं विधाता भी नहीं टाल सकते ।

हजार जन्मों का पुण्य प्रताप ही है कि आप इस पुण्य भूमि पर पैदा हुए । काला पानी , फिजाओं में धूल ही धूल , काले - काले मोटे मच्छरों से लैस , सड़कों और हाईवे पर तरणताल जैसे गड्ढों की विशेष सुविधा लिए यह शहर गोरे लोगों पर अपनी लाल-लाल परत चढ़ाएं उनके पीले - पीले दांतो से दिल्ली और मुंबई तो क्या न्यूयॉर्क और वेनिस की स्थिति पर भी हंसता रहता है । अगर आप इटली के वेनिस शहर घूमने का ख्वाब संजोए रखे हैं और अपने जीवन की गाढ़ी कमाई को विदेशी मुद्रा में खर्च करने की सोच रहे हो तो थोड़ा इंतजार कीजिए । बस एक बरसात का इंतजार कीजिए । एक हल्की सी भी बारिश हो जाए। बस अब आपको वेनिस जाकर अपनी जेब ढीली करने की जहमत नहीं उठानी होगी । कटिहार में भी मुफ्त में आप इस का लुफ्त उठा सकते हैं। हल्की सी बारिश के साथ ही सुंदर सा नजारा आपको पल भर में विस्मित कर लेगा । चारों तरफ स्वच्छ जल कल-कल बहता मिलेगा । एकदम वेनिस शहर को भी मात देता । बस एक नाव की जरूरत पड़ेगी आपको । चारों तरफ लोग अपने पीले - पीले दांतों को निकाल कर वेनिस को भी मात देने वाली मुफ्त व्यवस्था के लिए यहां देव भाषा में यहां के सुविधा दाताओं को दुआएं देते दिख जाएंगे । बहुत ही शानदार एवं खुशनुमा माहौल होता है। छोटका नाली , बड़का नाला , छोटका गड्ढा , बड़का गड्ढा, सुख्खा सड़क , गिल्ला मैदान सब के सब परम आनंदित होकर भेदभाव भूलकर एकाकार हो जाते हैं । मल - मूत्र बस का भी भेदभाव मिट जाता है । गंगा - जमुनी संस्कृति के जीते जागते ज्वलंत उदाहरण से आप दांतों तले अपनी अंगुलियां दबाकर काट खाएंगे । एकाकीपन का यह रूप आपको मोह लेगा।

सड़कों पर पानी से भरे गड्ढे को देखकर उसे मामूली गड्ढा समझने की बचकानी भूल बिल्कुल भी ना करें । निश्चित तौर पर वह डीजल ही होगा । पेट्रोल और डीजल का अथाह भंडार छिपा है यहां । हीरा - मोती , सोना- चांदी , मुक्ता- माणिक्य और मकरंद ना जाने क्या क्या बेशकीमती चीजें दबी हैं यहां की जमीन में । यहां की जमीन के नीचे कब कौन सी बेशकीमती चीजें निकल आए यह कोई नहीं जानता। नींव की खुदाई करते ही सोने के सिक्कों और ईंट - गहनों से भरा मटका मिल जाना तो आम सी बात है । बस नींव खोदने भर की देर है और आप राजा बन गए । यहां के सारे बड़े लोग उसी मटके से ही तो आदमी बन गए हैं। पहले वो आदमी नहीं थे ।

बात रोजगार की करें तो यहां सौ फीसदी रोजगार है । बेरोजगारी ही यहां सबसे बड़ा रोजगार है । काम कुछ नहीं, फुरसत कभी नहीं ' - यह नायाब चीज आपको बस यहीं और यहीं मिलेगी । एक मेंढ़क भी अगर नाली से बाहर आ जाय तो जमा भीड़ को तीतर - बितर करने के लिए प्रशासन को लाठी चार्ज करना पड़ जाए । नाला में फंसा ट्रैक्टर कैसे निकल पाता है यह देखने के लिए लोग मोटरसायकिल रोक - रोक के घंटों जायजा लेते रहते हैं और ट्रैक्टर का ड्राइवर चुप - चाप खैनी मलता हुआ मुस्कि मारता रहता है । यहां आदमी समय को बस में कर काट - काटकर भुजिया बना बना कर दूसरों में बांटता रहता है । ' कुछ बड़ा होने के इंतजार में मर जाने से अच्छा है छोटा चीज में ही जीते जी मजा ले लेना अक्लमंदी है ' यह बात यहां कुत्ता - बिलाय को भी पता है । हम तो आदमी हैं । समय की कोई कमी नहीं यहां बस आप समय चक्र को तोड़कर फेक दीजिए एक बार । जी हां शहरों में बेशुमार, यह शहर है - कटिहार । अगर आप कटिहार नहीं जानते तो आप मां के गर्भ में ही हैं ।

पूरे सीमांचल को अपने कलेजे में समेटे छोटका एम्स चौबीसों घंटे इमरजेंसी सुविधा से लैस , चमचमाता - गमगमाता स्कूल - कॉलेज जहां आप अपना ललका चेहरा साफ - साफ देख सकते हैं , निरमा सरफ़ वाला दूधिया साफ मार्केट , मिरचाई बाड़ी से पूर्णिया तक रोड किनारे आपको आंखें बाहर कर आश्चर्य से देखता टंगा हुआ मुर्गा और खस्सी , लेलहा चौक पर हलाल होते मुर्गे से नजरें बचाते हुए मुर्गा - भात पर घात लगाए तेज लोगों का जखीरा, मेडिकल कॉलेज का जलजला और दिलजला , बाज़ार का अफलातून भीड़ , भीड़ - भीड़ का खेल खेलता भीड़ , अंग्रेजी मीडियम को हिंदी में आसानी से बच्चा के साथ साथ मां - बाप को भी पढ़ाता हुआ प्राइवेट स्कूल, अंगरेजी बोलते बच्चा को देख सीना फुलाए पापा - मम्मी, सोशल मीडिया में पीएचडी करता लगभग हर जवां लड़का , मोबाइल में घुसकर अध्ययन और योग - साधना करता बच्चा - बच्चा और उसको देखकर दांतों तले उंगली दबाए गार्जियन, चाय - पान और नाई की दुकान पर बड़े - बड़े विद्वानों की विद्वता की धज्जियां अपने असीमित ज्ञान की फूंक से उड़ाता बुद्धिजीवी युवा और सोशल मीडिया पर राष्ट्र-हित में युद्ध लड़ते - लड़ते थककर पब्जी खेलता और टिक - टौक पर अपना हुनर मुफ़्त में बांटता बच्चा - बच्चा , खैनी और गुटका को चबा - चबाकर धूल में मिलता और हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला कमोबेश हर शख़्स । और क्या - क्या बयां करें यहां का गुणगान । कोई नहीं ऐसा , कटिहार जैसा ।

इतनी खूबी लिए इस शहर की जमीन की कीमत को यदि आप ज्यादा समझ रहे हैं तो आप निरे मूर्ख हैं । आप अभी भी अजन्मे है और ना ही जन्मे तो ठीक हैं । जितने में आप दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास और मुंबई के बांद्रा और मालाबार हिल्स के पास एक बंगला ले लें , रोड किनारे एक धुर ही बमुश्किल से आप पा सकते हैं और वह भी बिना कबूलती किए या पाठा गछे तो सोचिए भी मत । यहां जमीन की कोई कीमत नहीं । सड़क से सटे जमीन में हीरा दबा होने से करोड़ों की कीमत , तो ठीक उसके पीछे लोहा होने से हजार या लाख । जमीन के नीचे दबा क्या है इसी से इसकी कीमत जमीन वाला लगाता है और जो दलाल है उसी को बस पता होता कि जमीन के नीचे दबा क्या-क्या है । हाईवे से सटी जमीन की कीमत तो आप पूछने की भूल भी ना करें। एक करोड़ से शुरू होकर खत्म कहां होता कोई नहीं जानता । आप करोड़ों की जमीन रोड किनारे लोन और करजा लेकर खरीद कर उसमें झोपड़ी डाल तंदूर मुर्गा का दुकान , चाय का दुकान, मैगी - पनीर पकौड़ा का दुकान या खाली दही - पेड़ा का दुकान खोलकर रोज कमा खाकर अपना पेट पाल सकते हैं । और हां , चापाकल का कोनो जरूरत नहीं । बस एक प्लास्टिक का आयरन से पीला वाला एक मग रखना है और उठा लीजिए कहीं से भी । खाली एक बार सूंघ लीजिए कहीं डीजल तो नहीं निकला है । एक बात याद रखना है आपके जमीन के नीचे का हीरा खोद पर नहीं निकाल खाना है । काहे की हीरा चाटने से ही आदमी खत्म हो जाता है सो हीरा को दबा ही रहने दीजिए और चाय बिस्कुट और मैगी खा कर ही मस्त रहना है । दबे हीरे के एहसास से ही आपका कॉन्फिडेंस बना रहता है ।

इस जमीन का सड़क कोलकाता से मिलेगा, यह वाला फोरलेन से सटा जमीन होगा, इस जमीन के बगल में फलाना कॉलेज होगा, इस जमीन पर पेट्रोल चेक हो रहा है, ठीक सामने फलाना स्कूल बनेगा और भी न जाने क्या - क्या । यह सब हमारे पैदा होने से पहले दादा के जमाने से ही हम सुनते आ रहे हैं ।

चौक पर रोड पर पहले कटरा बनाने का सपना आपको सोने नहीं देता। दसियों जगह से उधार - पैंचा ले, सोना - गहना गिरवी रख, आधा पेट खाकर आप दो-तीन कटरा बनाकर अपना सीना फुला सकते हैं । यह बात अलग है कि आपके फूले हुए सीने के भीतर पिचका हुआ दिल कब आपका साथ छोड़ दे आपको नहीं पता हो । लाखों लगा कर दो - तीन हजार कमाने के हुनरमंद यहीं पाए जाते हैं । कटरा आपको अपार शांति देता है और बिना खाए आपको खुद को जिंदा भी रखने का हुनर भी देता है । हर कटरे का भाड़ा उस दुकानदार का दुकान कितना चलता है उससे तय होता है । कुछ तेज दिमाग वाले कम लागत के जीरो मेंटेनेंस की लौज बना लेते हैं और दिन भर कैरम खेल खेल कर स्वर्ग का मजा यहीं ले लेते हैं। लौज में मौज लेते लड़कों को देखकर लौज़ वाला भी मस्त रहता है और मुर्गा - भात में साझेदारी कर मालिक और दास का भेद - भाव ख़तम कर देता है ।

कुछ लोग अपने माथे पर फोन का टॉवर लगवाकर भी बड़ी - बड़ी कंपनियों को भी अपना गुलाम बना लेते हैं और भाड़े के साथ - साथ मशीन का डीज़ल भी पी जाते हैं । टॉवर से खतरनाक रेडिएशन निकलकर इंसान को पागल कर दे या कैंसर इस बात से आप उनको बेवकूफ नहीं बना सकते । यदि आप समझाने की कोशिश करने वाले हैं तो ठहर जाइए । एक बार ठंडे दिमाग से सोच लीजिए कहीं आप उनको मिलने वाली सल्तनत से जल - भुन तो नहीं रहे । सल्तनत का नशा गांजे के नशे पर भारी होता है और आप वो हो जाते हैं जो आप हैं नहीं । मकान मालिक का होना ही आपको ओज और तेज से भर देता है। भाड़े-दार पर हुकूमत चलाकर जो सुख है वह देश की हुकूमत चलाने में कहां । सबसे निरीह प्राणी भाड़े- दार ही होता है। जिसके पास एक धुर भी जमीन नहीं वह पैदा ही क्यों हुआ ? जीवन को सार्थक करने के लिए यहां आपको अपनी जमीन चाहिए । जमीन नहीं तो कोई इज्जत नहीं । सड़क किनारे आपकी जमीन का होना आपकी हुनरमंदी को जगजाहिर करता है । लड़के का अपना पक्का घर है, दो ठो कटरा है और बस कुछ और ना भी हो तो चलता है । मकान भाड़े में एक अलग ही रस है यहां । एक तो पैसे का रस और दूसरा आपको अपनी सल्तनत और रि़याया पर हुक्म चलाने का नायाब अनुभव । दूसरा वाला अनुभव ज्यादा मजा देता है । किराएदार कितना भी किराया दे दे , मकान मालिक का कर्जा कभी नहीं उतार पाता है । इतना बड़ा मजा चाहिए तो जमीन के पीछे दीवानगी का होना लाजिमी है ।

भाड़े-दार रोज मुर्गा - मछली खाए और मकान मालिक भले ही नून - भात मगर ओहदा हमेशा मकान मालिक का ही बड़ा होता है। मकान मालिक अगर टूटल सायकिल पर बार - बार चेन चढ़ाकर चले और भाड़े- दार बुलेट पर तो क्या हुआ? भाड़े-दार लाख कमाकर भी गरीब होता है और मकान मालिक निकम्मा होकर भी मालिक ही होता है । इसी गरीबी को दूर करने के लिए गरीबों की दौड़ है यहां मालिक बनने की ।

क्या सेठ, क्या डॉक्टर, क्या बाबू, क्या नेता सब के सब ज्यादा से ज्यादा जमीन खरीद कर ज्यादा से ज्यादा इज्जत खरीद लेना चाहता है । रोड किनारे प्लॉटिंग, ई फलाना नेता का, ई फलाना डॉक्टर का , ई फलाना सेठ का , ई फलाना बाबू का । ई लोग नहीं बेचेगा , आप पीछे वाला ले लीजिए । नेता जी के पीछे वाला 50 लाख, सेठ जी के पीछे 40 लाख, डॉक्टर के पीछे 1 करोड़ । 50 लाख वाला में रास्ता नहीं मिलेगा आपको उड़ कर जाना पड़ेगा । 40 वाला में थोड़ा लफड़ा है, अगर आज बयाना कीजिएगा तो अभी लफड़ा सलता देंगे । एक करोड़ वाला में दवाई दुकान खोल दीजियेगा तो भयानक चलेगा । पूर्णिया वाला रोड का दोनों तरफ बिक गया है, डी एस कॉलेज से कोलकाता तक बिक गया है, मिर्चाई बाड़ी से फलका तक सब खत्म हो गया है , मनिहारी रोड के दोनों किनारे सब सेठ गोदाम और स्कूल के लिए खरीद लिया है । दलाल को एक सौ साल बाद का भी सब कुछ पता रहता है । दलाल एक सौ साल तक जिंदा नहीं रहेगा इसलिए आपको दिलाकर चैन से दुनिया से चले जाना चाहता है ।

यह सोना विहार है, यह चांदी नगर , यह हीरा विहार , यह मोती नगर , यह पन्ना विहार , यह माणिक्य नगर , यह कुबेर खंड , यह लक्ष्मी विहार …. सब बुक हो गया है । यहां मॉल होगा , यहां टॉल होगा , यहां ताजमहल बनेगा , यहां प्रधानमंत्री जी ले लिए हैं , अमिताभ बच्चन यहीं आ रहे हैं, मुकेश अंबानी अपना एंटिला छोड़कर फोर लेन के पास रहेंगे , बाबा रामदेव अब हरिद्वार छोड़ बाबा - विहार में यहीं आश्रम लेंगे , फेसबुक का फैक्ट्री यहीं खुलेगा , साहेबगंज का पूल बनते ही सब साहब लोग यहीं रहने आएंगे यह सब बात का जानकारी आपको बिना पैसा का चाय - पान के दूकान पर या सैलून में चूल कटाते - कटाते मिल जाएगा । दू साल बाद आप खरीद नहीं पाइएगा , यहां का जमीन का दाम आग हो जाएगा जिसमें आप जलकर भस्म हो जाइएगा , अभिए बायानानामा कर दीजिए यह सब बात सुनकर आप हदस कर हदस जाएंगे ।

शहर में सौ में नब्बे बुलेट दलाल लोग खरीदकर रोज चमकाकर चलाता आपको दिख ही जाएगा और हां , दलाल आपको जमीन मालिक से ज्यादा स्मार्ट दिखेगा । उसपर यहां का आयरन का लाल पीला रंग नहीं चढ़ा मिलेगा काहे कि वो मिनरल वॉटर पीता है । जमीन मालिक के जैसन वह खैनी नहीं खाता मिलेगा । पान - पराग और तुलसी का खुशबू से आप मस्त हो जाएंगे । सादा ड्रेस और रंगीन चस्मा और काला जूत्ता में डील-डौल देखकर आपको अपने आप पर लाज़ आयेगी और आप संट हो जाएंगे । दलाल शब्द थोड़ा ठीक नहीं जान पड़ता सो आप मुंह पर मत बोल दीजियेगा और उसका नंबर मोबाइल में दलाल बोलकर सेभ मत कीजिएगा। वह आपका सबसे बड़ा हितैषी है सो आप उनका नाम सोच समझकर सेभ कीजिएगा । वही आपका तारणहार है और वही आपको मोक्ष देगा बाकी सब मोह - माया है ।

अमला टोला, बनिया टोला, कालीबारी, राज हाता ,बिनोदपुर , दुर्गापुर, नया टोला , चूड़ी पट्टी , गामी टोला, दुर्गा स्थान ई सब जगह में एक धुर के लिए कम से कम एक करोड़ चाहिए । वह भी तब जब जमीन बेचने वाला को आपका थोबरा पसंद आ जाए । यह सारे इलाके आपको वेनिस का मजा देंगे । आपके बेड तक पानी की सुविधा है यहां । मंगल बाजार, न्यू मार्केट , बड़ा बाजार, एमजी रोड में घर या दुकान लेना कनॉट प्लेस में लेने से कोनो कम नहीं है । शहीद चौक की बात करेंगे तो लोग आपको ' पगला गया है ' कहके आपके पीठ पीछे मुंह में गुटका दबाए ही जोर का हंसी हंस देंगे ।

आप घर में कितने ही निकम्मे क्यों न हो आपको पूरा इज्जत मिलेगा बाहर में अगर आपके पास किराए पर देने के लिए कटरा या मकान है । रजिस्ट्री आफिस के सामने रोज की कचा - कच भीड़ यह दिखलाती है सब लोग उतनी ही इज्जत पाने को कितना बेताब हैं। सबसे ख़ास बात यह है कि आप खाली जमीन खरीदकर उसमें आज बाउंड्री वाल दे दे और कल ही आपको बिना खरीदार के ही 20 से 25 लाख के फायदे का एहसास अपने आप हो जाएगा । जमीन खरीदने वाला न जाने कितनी रात इसी खुशनुमा अहसास से नहीं सोता । सबकुछ दांव पर लगाकर भी कई रातों तक न सोकर भी स्वर्ग - सुख का अनोखा अहसास यहीं , बस यहीं दिखता है। यहां आदमी नहीं जमीन ही जिंदा है और जमीन ही जिंदगी जीता है आदमी नहीं । आबोहवा ही शहर की कुछ ऐसी है कि जमीन लेते ही आप बन गए। क्या बन गए ? यह तो आप ही जान जानते हैं और हम ।

(राजू दत्ता ✍🏻)