नशे की रात ढल गयी-23
ज्यों ही गाँव के उस ब्रांच में इन किया ,गायत्री देवी ने देखते ही मुझे पहचान लिया । बहुत गर्मजोशी भरे अंदाज में उसने कहा-'अच्छा त रउवे बानी ,सर ! ..' फिर उसने पूराने दिनों की बात छेड़ दी जब मैं मेन-ब्रांच में पोस्टेड था और वह रेमिटेंस में अक्सर आती थी । बहुत पहले की एक घटना मुझे भी याद थी जब गायत्री देवी को एक प्लानिंग के तहत मेन-ब्रांच में दो चार दिनों के लिए डिप्युटेशन पर बुला लिया गया था और उसकी गैरहाजिरी में वहाँ ब्रांच-शिफ्टिंग हो पायी थी । बिजनेस को ध्यान में रखकर गाँव के उस ब्रांच को रिहायसी इलाके से हटाकर मार्केट में शिफ्ट होना था । लेकिन जब भी नये प्रिमाइसेज में शिफ्ट होने की तारीख तय होती , इसकी खबर कहीं से पूराने मकान मालिक तक पहुँच जाती और वह कोई-न-कोई अड़चन खड़ी करवा देता । बैंक के उच्चाधिकारियों के कानों तक किसी ने सीधे-सीधे गायत्री देवी का नाम पहुँचा दिया । अपने डिटेंशन के उन चार दिनों में उसने सारे स्टाॅफ से यह पूछ-पूछकर नाक में दम कर दिया था कि उसे मेन ब्रांच में क्यों रोक रखा गया है ? हम सबसे यही कहा गया था कि वह जब भी पूछे तो बस यही कहना है कि उपर से आदेश है , कोई बड़े साहब उससे कुछ पूछताछ करेंगे । लेकिन इस उत्तर से वह संतुष्ट नहीं होती और उसके चेहरे से साफ झलकने लगता कि हमलोग उससे कुछ छुपा रहे हैं ।
अपनी नयी...
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