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सपनें.....
सपनों की भी कोई गिनती नहीं होती।जब मर्जी होती है चले आते हैं।कभी बंद आंखों में तो कभी खुली आँखों में ।
अनगिनित सपनें देखे होंगे हमनें अपनी जिंदगी में लेकिन सपने कभी पूरे नहीं होते । टूटे आईने की तरह किरचें-किरचें बिखर जाते हैं।तब बहुत चुभते हैं आंखों में,बहुत दर्द होता है ,आंखों से पानी बहता है ,आंखें लाल हो जाती हैं। बीमार हो जाती हैं आंखें।
इंसान टूटे सपनों के दर्द को लेकर जीने की कोशिश तो करता है लेकिन भीतर से टूटा रहता है।उन सपनों में ही उलझा रहता है।वक्त बेवक्त आंखों से पानी गिरता रहता है किसी शांत झरने की तरह।
इसी को रोना कहते हैं,यही दर्द होता है जो नासूर बन जाता है और अश्वत्थामा के माथे पर लगे घाव की तरह सारी उम्र रिसता रहता है और खुद वो जीवन के इस जंगल में भटकता फिरता है।उसे किसी भी तरह से शांति नहीं मिलती। दिखावे के लिए तो वो खुशी जाहिर करता है मगर भीतर ही भीतर आंसुओं का समन्दर फटने को तैयार रहता है।एक सुनामी सी उछाल मारती रहती है क्योंकि वो लोग शापित होते हैं जिनकी आंखों में सपनों के टूटे किरचें चुभे होते हैं ........!!!!
****** अंजली ******